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परिमाणपरूवणा
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केव ० ० १ दुभागो सादिरेगो । अप्प० दूभागो देसू ० ' । अवहि० असंखेअदिभागो । अवत्त • अनंतभागो । एवं कायजोगि ओरालि० - अचक्खु ० - भवसि ० - आहारगति । आउगं एवं चैव । अवत्त० असंखेंज्जदिभागो । सेसाणं सव्वेसिं असंखें जरासीणं ओवं । वरि केसिं च अवत्त ० अत्थि केसिं च अवत्त० णत्थि । एसिं अवत्तव्यमत्थि तेसिं अवत्तव्यं अवहिदेण सह भाणिदव्वं । सेसाणं अनंतरासीणं ओघभंगो | णवरि अवत्त • णत्थि । संखेजरासीणं पि भुज० - अप्प० ओघभंगो। अवट्ठि ० - अवत्त० संखेजदिभागो । एवं अट्टष्णं क० । एसिं सत्तण्णं क० अवत्त • णत्थि तेसिं पि एसेव भंगो । वेव्वि०मि० - आहारमि० - कम्मइ० - अणाहार० णत्थि भागाभागो ।
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एवं भागाभागं समत्तं परिमाणाणगमो
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१२८. परिमाणाणु ० दुवि० - ओघे० ओदे० । ओघे० सत्तण्णं क० भुज०अप्प - अव०ि बंधगा केतिया ? अनंता । अवत्त० के० ९ संखेजा । आउ० भुज०अप्प०-अवट्ठि० - अवत्त ० बंध० के० १ अनंता । एवं ओघभंगो कायजोगि-ओरालि०अचक्खु ०- भवसि ० - आहारगति ।
तिरिक्खोघं
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एइंदिय-वणफदि- णियोद०. बन्धक जीव कितने हैं ? साधिक द्वितीय भागप्रमाण हैं । अल्पतरपदके बन्धक जीव कुछ कम द्वितीय भागप्रमाण हैं । अवस्थितपदके बन्धक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव अनन्तवें भागप्रमाण हैं । इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंमें जानना चाहिए । आयुकर्मका भङ्ग इसी प्रकार है । मात्र यहाँपर अवक्तव्यपदके बन्धक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । शेष सब असंख्यात राशियों का भङ्ग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि किन्हीं में अवक्तव्यपद है और किन्हीं में नहीं है । जिनमें अवक्तव्यपद है उनमें अवक्तव्यपद अवस्थितपदके साथ कहना चाहिए । शेष अनन्तराशियोंमें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यपद नहीं है । संख्यात राशियों में भी भुजगार और अल्पतरपदका भङ्ग ओघके समान है । अवस्थित और अवक्तव्यपदवाले जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं । इस प्रकार आठों कर्मोंका जानना चाहिए। जिनके सात कर्मोंका अवक्तव्यपद नहीं है उनका भी यही भङ्ग है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगो, कार्मणकाययोगी और अनाहारकों में भागाभाग नहीं है ।
इस प्रकार भागाभाग समाप्त हुआ ।
परिमाणानुगम
१२८. परिमाण दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे सात कर्मों के भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । अवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । आयुकर्मके भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । इस प्रकार ओघके समान काययोगी, औदारिककाययोगी, अक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवों में जानना चाहिए । सामान्य तिर्यञ्च, एकेन्द्रिय,
१. ता० प्रतौ दुभागे देसू० इति पाठः । २. ता० प्रतौ आहार त्ति दव्वं ] परिमाणं दुवि० आ०प्रतौ श्राहारमि० कम्मइ अणाहार० परिमाणाणु ० दुवि० इति पाठः ।
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[ मिस्स० कम्मइ० श्रणाहारग भंगो । एवं भागाभागं समतं ।
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