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महाबंधे पदेसंबंधाहियारे
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१३२. बादरएइंदि० - पञ्जत्तापज्ज० - बादरवाउअपज० सत्तण्णं' क० भुज०अप्प०-अवद्वि० सव्वलो० । आउ० चचारिप० लो० संखे० । बादरपुढ० आउ०० तेउ ० बादरवण० पत्ते ० तेसिं चेव अपज ० बादरवण ० - बादरणियोद० पञ्जत्तापज्ज० सत्तणं क० तिष्णि प० सव्वलो० । आउ० चत्तारिप० लोग० असंखै० । पंचणं बादरपजत्ताणं पंचिं० तिरि० अप० भंगो । सेसाणं संखेजासंखेजरासीणं लोग० असं० । कम्मइ० - अणाहार० भुज० सव्वलो० । बादरवाउ०पजत्त० सत्तण्णं कः तिष्णि पदा आउ० चत्तारिप० लो० संखेज्ज० ।
एवं तं सम
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१३२. बादर एकेन्द्रिय और उनके पर्याप्त व अपर्याप्त और बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीवांमें सात कर्मों के भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका सब लोकप्रमाण क्षेत्र है । आयुकर्मके चारों पदोंके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अनिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर और उनके अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक और बादर निगोद तथा इन दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें सात कर्मोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोकप्रमाण है । आयुकर्मके चारों पदोंके बन्धक जीवांका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । पाँचों बादर पर्याप्तोंका भङ्ग पंचेन्द्रिय तिर्यन अपर्याप्तकों के समान है। शेष संख्यात और असंख्यात राशियोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में भुजगार पदके बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है । बादर वायुकायिक पर्याप्तक जीवोंमें सात कम के तीन पदों और आयुकर्मके चार पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है ।
विशेषार्थ — बादर एकेन्द्रिय आदिका मारणान्तिक समुद्धात के समय सब लोक क्षेत्र है । इस समय सात कर्मोंके भुजगार आदि तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इनमें सात कर्मों के उक्त पदों का सब लोकप्रमाण क्षेत्र कहा है । पर आयुकर्मके बन्धके समय मारणान्तिक समुद्धात और उपपादपद सम्भव नहीं, इसलिए आयुकर्मके सब पदोंकी अपेक्षा इनमें लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र कहा है । बादर पृथिवीकायिक आदि जीवोंका भी मारणान्तिक समुद्घातके समय सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र सम्भव है, इसलिए इनमें भी सात कर्मों के तीन पदोंकी अपेक्षा उक्त क्षेत्र कहा है पर इनका स्वस्थान क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इनमें आयुकर्मके सब पदोंकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र कहा है । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त कोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । पाँचों बादर पर्याप्तकों का भी इतना ही क्षेत्र है, इसलिए इनका भङ्ग पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकों के समान जानने की सूचना की है। शेष संख्यात और असंख्यात संख्यावाली राशियों का भी लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है, इसलिए उनमें भी सब कर्मों के यथासम्भव पदोंकी अपेक्षा यही क्षेत्र कहा है । मात्र बादर वायुकायिक पर्याप्तक जीव इसके अपवाद हैं । कारण कि उनका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए उनमें आठों कर्मों के सम्भव पदोंकी अपेक्षा उक्तप्रमाण क्षेत्र कहा है । कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंका सब लोकप्रमाण
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१. ता० प्रतौ बादरवाउ प० सत्तण्णं, ग्रा० प्रतौ बादरवणफ० सत्तण्णं इति पाठः । २. ता० प्रतौ एवं खेयं समत्तं इति पाठो नास्ति ।
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