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महाबंधे पदेसर्वधाहियारे हाणी कस्स ? यो सत्तविधबंधगो उक्कस्सजोगी मदो सुहुमणिगोदजीवअपञ्जत्तएसु उववण्णो तस्स उक्क० हाणी । उक्क० अवट्ठाणं कस्स ? यो सत्तविधबंधगो उक्कस्सजोगी पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णए जोगहाणे पडिदो तदो अहविधबंधगो जादो तस्स उक्क० अवहाणं । [आउ. ओघं] । एवं तिरिक्खोघं णस०-कोधादि०३-मदि०-सुद०असंज-तिण्णिले०-अब्भव०-मिच्छा० असण्णि त्ति । पंचिंदि०तिरि०३ सत्तण्णं क. वडि-अवहाणं तिरिक्खोघं । हाणी कस्स ? यो अण्ण० सत्तविधबंधगो........।
अप्पाबहुगं १५३...... "संभवेण' ओरा०मि० सत्तण्णं क० ओघं । णवरि असंखेंजगुणहाणी उवरि असंखेंजगुणवड्डी असंखेंजगु० । आउ० ओघं । अवगद० सत्तण्णं क० सव्वत्यो० अवढि० । अवत्त० संखेंजगु० । असंखेंजभागवड्डि-हाणी दो वि तु० संखेंजगु० । संखेंजभागवड्डि-हाणी दो वि तु० संखेंजगु० । संखेंजगुणवहि-हाणो दो वि तु० संखेंजगु० । असंखेंजगुणहाणी संखेंजगु० । असंखेंजगुणवड्डी विसेसा० । एवं एदेण बीजेण है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करता हुआ उत्कृष्ट योगवाला जीव मरा और सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवोंमें उत्पन्न हुआ वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है? जो सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगवाला जीव प्रतिभग्न होकर और तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरकर आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करने लगा वह उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। आयुकर्मका भङ्ग ओघके समान है। इस प्रकार सामान्य तिर्यश्चोंके समान नपुंसकवेदी, क्रोधादि तीन कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंमें जानना चाहिए। पञ्चन्द्रियतिर्यश्चत्रिकमें सात कर्मोकी वृद्धि और अवस्थानका स्वामी सामान्य तिर्यश्चोंके समान है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो अन्यतर जीव प्रतिभग्न होकर और तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरकर आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है........."
अल्पबहुत्व १५३........"सम्भव होनेसे औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें सात कर्मोंका भंग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानिके ऊपर असंख्यातगुणवृद्धि असंख्यातगुणी है। आयुकर्मका भङ्ग ओघके समान है । अवगतवेदी जीवोंमें सात कोके अवस्थित पदवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अवक्तव्यपदवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातमागहानिवाले जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिवाले जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगणहानिवाले जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातगुणहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातगुणवृद्धिवाले जीव विशेष
१. ता०प्रतौ -बंधगो [अत्र ताइपत्रमेकं विनष्टम्.." ] संभवेण, आ० प्रतौ बंधगो इति पाठः।
संभवेण
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