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वड्ढीए सामित्तं कस्स ? जो सत्तविधबंधगो उक्कस्सजोगी पडिभग्गो तप्पाऑग्गजहण्णए जोगहाणे पडिदो अट्ठविधबंधगो जादो तस्स उक्क० अवट्ठाणं ।
१५०. आउ० उक्क० वड्डी' कस्स ? यो अट्ठविधबंधगो तप्पा०जहण्णगादो जोगट्ठाणादो उक्कस्सजोगट्ठाणं गदो तस्स उ० वड्डी। उ० हाणी कस्स ? जो उक०जोगी पडिभग्गो तप्पा जहण्णए जोगहाणे पडिदो तस्स उ० हाणी। तस्सेव से काले उ० अवहाणं । एवं ओधभंगो कायजोगि-लोभक०-अचक्खु०-भवसि०आहारग त्ति ।
१५१. णिरएसु सत्तण्णं क० उ० वड्डी कस्स ? यो अट्ठविधवंधगो तप्पाओग्गजहण्णगादो जोगट्ठाणादो उ० जोगटाणं गदो तदो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० वढी । उ० हाणी कस्स ? यो सत्तविधबंधगो उक्क०जोगी पडिभग्गो तप्पाऑग्गजहण्णए जोगट्ठाणे पडिदो अट्ठविधबंधगो जादो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवहाणं । आउ० ओघं । एवं सव्वणिरय-सव्वदेव-वेउवि०-आहारविभंग-परिहार-संजदासंज०-सम्मामि।
१५२. तिरिक्खेसु सत्तण्णं० उ० वड्डी कस्स ? यो अट्ठविधबंधगो तप्पा०जह.. जोगट्ठाणादो उ० जोगट्ठाणं गदो तदो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उ० वड्डी। उ० वाला जीव प्रतिभग्न होकर तथा तत्त्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरकर आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला हो गया वह उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है।
१५०. आयुकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त हुआ वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट योगवाला जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । तथा उसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है । इस प्रकार ओघके समान काययोगी, लोभकषायी, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवों में जानना चाहिए।
१५१. नारकियोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करने लगा वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है? जो सात प्रकार के कर्मोका बन्ध करता हुआ उत्कृष्ट योगवाला जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरकर आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । तथा उसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। आयुकर्मका भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार सब नारकी, सब देव, वैक्रियिककाययोगी, आहारककाययोगी, विभज्ञानी, परिहारविशुद्धिसंयत, संयतासंयत और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में जानना चाहिए।
१५२. तिर्यश्चोंमें सात कर्मोकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध करने लगा वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी
१. ता०प्रती आउ० वडी० इति पाठः ।
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