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महाबंधे पदेसबंधाहियारे सत्तण्णं क० ज० पदे० क.? अण्ण० सम्मा० मिच्छा० पढमसमयतब्भवत्थ० जहण्णजोगिस्स । आउ० णिरयभंगो । अणुदिस याव सव्वट्ठ त्ति सत्तण्णं क० ज० प० क० ? अण्ण० पढमसमयतब्भवत्थ० जहण्णजोगिस्स । आउ० सम्मादि० ।
४८. बादरएइंदिय० एइंदियभंगो । णवरि अपज० पढम० तब्भव० जहजोगि० । एवं आउ० । णवरि खुद्दाभव० तदियतिभा० पढमसम० वट्ट० जह०जोगि० । एवं अपजत्तएसु । पज्जत्तेसु सत्तण्णं क० ज० प० क० ? अण्ण० पढम०तब्भव० जह० जोगि० । आउ० जह० घोडमाणजह जो०। एवं सव्ववादराणं । सुहुमएइंदि० सत्तणं क० ज० प० क० ? अण्ण. अपज. पढम०तब्भवत्थ० जह०जोगि० । आउ० जह० खुद्दाभव० तदिय० जह०जो०' । एवं सुहुमअप० । सुहुमपन्ज० सत्तणं क० ज० ५० क.? अण्ण० पढम०तम्भवत्थ० जह०जोगि० । आउ० जह. घोडमा०जह०जोगि० । एवं सव्वसुहुमाणं । विगलिंदियाणं अपजत्तयभंगो । णवरि लेकर उपरिम प्रैवेयक तकके देवोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि देव प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ है और जघन्य योगवाला है,वह उक्त सात कर्मों के प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मका भङ्ग सामान्य नारकियोंके समान है । नौ अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ है और जघन्य योगवाला है, वह उक्त सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी सम्यग्दृष्टि देव है।
४८. बादर एकेन्द्रियों में एकेन्द्रियोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि जो प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगवाला अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय जीव है, वह सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आयुकर्मका भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि क्षल्लक भवग्रहणके तृतीय त्रिभागके प्रथम समयमें विद्यमान और जघन्य योगवाला उक्त जीव आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिए । पर्याप्तकोंमें सात कर्मो के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ है और जघन्य योगवाला है, वह उक्त सात कोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी घोलमान जघन्य योगवाला उक्त जीव है। इसी प्रकार सब बादरोंके जानना चाहिये। सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अपर्याप्त जीव प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगवाला है, वह उक्त सात कों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी क्षुल्लक भवग्रहणके तृतीय त्रिभागके प्रथम समयवर्ती और जघन्य योगवाला जीव है। इसी प्रकार सूक्ष्म अपयोप्तकोंमें जानना चाहिये। सूक्ष्म पर्याप्तकोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सूक्ष्म पर्याप्त जीव प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ है और जघन्य योगवाला है, वह सात कर्मो के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी घोटमान जघन्य योगवाला उक्त जीव है। इसी प्रकार सब सूक्ष्म जीवोंके जानना चाहिये । विकलेन्द्रियोंमें अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है।
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