________________
सामित्तपरूवणा
गद० ससणं क० ज० पदे० क० ? अण्ण० घोडमा० जह० जो० । एवं सुहुमसं० छष्णं क० ।
२७
५५. विभंगे अट्टणं क० ज० प० क० १ अण्ण० चदुगदि० घोडमाणज०जो० अट्ठविध० । आभिणि-सुद-अधि० सत्तण्णं क० ज० प० क० १ अण्ण० चदुर्गादि० पढम० तब्भव० जह० जो० । आउ० ज० प० क० १ अण्ण० चदुग० घोडमा० अट्ठविध ० ज०जो० । एवं ओधिदं० सम्मा० खइग० - वेदग० । णवरि वेदगे दुर्गादि । मणपज० अट्ठण्णं क० ज० प० क० ? अण्ण० घोडमा० अट्ठविध० जह० जो० । एवं संजद - सामाइ० छेदो०- परिहार० -संजदासंजद० ।
५६. चक्खु ० सत्तण्णं क० ज० प० क० १ अण्ण० चदुरिं० पढम० तब्भव ० ज०जो० जह०पदे०चं० वट्ट० । आउ० ज० प० क० १ अण्ण० चदुरिं० घोडमा०जह० जो० ' ।
कर्म के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो असंज्ञी घोलमान जघन्य योगवाला है, वह आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । अपगतवेदी जीवों में सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अपगतवेदी जीव घोलमान जघन्य योगवाला है, वह उक्त सात कर्मोके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्पराय संयत जीवोंमें छह कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामित्व जानना चाहिये ।
५५. विभङ्गज्ञानी जीवोंमें आठों कर्मा के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चारों गतिका विभङ्गज्ञानी जीव घोलमान जघन्य योगवाला और आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला है, वह आठों कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें सात कर्मोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चारों गतियोंका जीव प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ और जघन्य योगवाला है, वह उक्त सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चारों गतियोंका जीव आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला है और घोलमान जघन्य योगवाला है, वह आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है। कि वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें दो गतियों के जीव जघन्य प्रदेशबन्ध के स्वामी होते हैं । मनः पर्यज्ञानी जीवों में आठ कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला और घोलमान जघन्य योगवाला जीव है, वह आठों कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीवोंके जानना चाहिए ।
५६. चक्षुदर्शनी जीवोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन हैं ? जो अन्यतर चतुरिन्द्रिय जीव प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ है, जघन्य योगवाला है और जघन्य प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह उक्त सात कर्मोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चतुरिन्द्रिय जीव घोलमान जघन्य योगवाला है, वह आयुकर्म के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है ।
१. आ०प्रतौ घोडमा० तब्भव० जह०जो० इति पाठः ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org