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अंतरपरूवणा ८९. सण्णी. सत्तण्णं क० ज० ए० । अज० ज० खुद्दाभ० समऊणं । उ० सागरोवमसदपुध० । आउ० ओघभंगो । आहार० सत्तणं क० ज० ए० । अज० ज० ए०, उ० अंगुल० असंखें । आउ० जहण्णाजहणं ओघं ।
एवं कालं समत्तं ।
अंतरपरूवणा ९०. अंतरं दुविधं-जहण्णयं उक्कस्सयं च । उक्क० पगदं । दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० छण्णं क० उक्कस्सपदेसबंधंतरं केवचिरं कालादो होदि ? जह० एग०, उक्क० अद्धपोग्गल० । अणु० ज० ए०, उ० अंतो० । मोह० उ० ज० ए०, उ० अणंतहै. यह स्पष्ट ही है। अपने स्वामित्वको देखते हुए सम्यग्मिथ्यात्वमें मनोयोगी जीवोंके समान भङ्ग बन जाता है, इसलिये सम्यग्मिथ्यात्वमें मनोयोगी जीवोंके समान कालप्ररूपणा जाननेकी सूचना की है।
८९. सज्ञी जीवोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल सौ सागर पृथक्त्वप्रमाण है। आयुकर्मका भङ्ग ओघके समान है। आहारकोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। आयुकर्मके जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धका काल ओघके समान है।
विशेषार्थ-इन दोनों मार्गणाओंमें भी यथायोग्य भव ग्रहणके प्रथम समयमें सात कर्मो का जघन्य प्रदेशबन्ध होता है, अतः इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है । संज्ञियोंमें इस एक समयको अपनी जघन्य भवस्थितिमेंसे कम कर देने पर उनके अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण प्राप्त होनेसे वह उक्तप्रमाण कहा है। तथा उपशमश्रेणिमें जो आहारक एक समय तक सात कर्मो के बन्धक होकर दूसरे समयमें मर कर अनाहारक हो जाते हैं, उनकी अपेक्षा आहारकों में सात कर्मों के अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय कहा है। यहाँ इतना विशेष समझना चाहिये कि छह कर्मो के अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय लानेके लिये उतरते समय एक समय तक सूक्ष्मसाम्परायमें रखकर मरण करावे और मोहनीयके अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय लानेके लिये उतरते समय एक समयके लिये अनिवत्तिकरणमें मोहनीयका बन्ध कराकर मरण करावे-इन दोनों मार्गणाओंमें सात कर्मों के अजघन्य प्रदेशबन्धका उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी कायस्थितिप्रमाण है, यह स्पष्ट ही है। तथा दोनोंमें आयुकर्मका भङ्ग ओघके समान है,यह भी स्पष्ट है।
इस प्रकार काल समाप्त हुआ।
अन्तरप्ररूपणा ९०. अन्तर दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे छह कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है।
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