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महाबंधे पदेसबंधाहियारे णवरि अहविध० उक्क० । अणाहार० कम्मइयभंगो।
एवं उक्कस्ससामित्तं समत्तं । ४३. जहण्णए पगदं । दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० सत्तण्णं क० जहण्णओ पदेसबंधो कस्स ? अण्ण० सुहुमणिगोदजीवअपजत्तयस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स जहण्णजोगिस्स जहण्णए पदेसबंधे वट्टमाणस्स' । आउगस्स जहण्णपदेसबंधो कस्स ? अण्ण० सुहुमणिगोदअपज्जत्तयस्स खुद्दाभवग्गहणतदियतिभागेण पढमसमयआउगबंधमाणयस्स जहण्णजोगिस्स जह० पदे० ब० वट्ट० । एवं ओघभंगो तिरिक्खोघं एइंदि०वणप्फदि-णियोद-कायजोगि-णqस०-कोधादि०४-मदि-सुद०-असंज०-अचक्खु०किण्ण०-णील०-काउ०-भवसि०-अभवसि-मिच्छा०-असण्णि-आहारग त्ति ।
४४. आदेसेण णिरएसु सत्तण्णं क० ज० प० क० ? अण्ण० असण्णिपच्छागदस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स जहण्णजोगिस्स । आउ० ज. प. क. ? अण्ण० सम्मा० मिच्छा० घोलमाणजहण्णजोगिस्स । एवं पढमाए पुढवीए देव०-भवण०वाण । छसु हेडिमासु सत्तण्णं क० ज० प० क० ? अण्ण० मिच्छा० पढमसमय
प्रदेशबन्धका स्वामी है। अनाहारक जीवोंमें कार्मणकाययोगी जीवोंके समान जानना चाहिए ।
___ इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ। ४३. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सक्ष्म निगोद जीव अपर्याप्त है, प्रथम समयमें तद्भवस्थ हुआ है, जघन्य योगवाला है और जघन्य प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह उक्त सात कर्मो के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीव झल्लक भवग्रह्णके तृतीय त्रिभागके प्रथम समयमें आयुबन्ध कर रहा है, जघन्य योगवाला है और जघन्य प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यश्च, एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक, निगोद, काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कपायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और आहारक जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है।
४४. आदेशसे नारकियोंमें सात कर्मोंके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर जीव असंज्ञियोंमेंसे आकर नारकी हुआ है, प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ है और जघन्य योगवाला है, वह उक्त सात कर्मो के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि घोलमान जघन्य योगवाला जीव आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार प्रथम पृथिवीमें तथा सामान्य देव, भवनवासी और व्यन्तरोंके जानना चाहिये। द्वितीयादि नीचेकी छह पृथिवियोंमें स कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि, प्रथम समयमें तद्भवस्थ हुआ और जघन्य योगवाला नारकी उक्त सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयु
१. ता. प्रतौ पदेसवंधो [ध माणयस्त इति पाठः । २. प्रा. प्रतो आउगस्स पदेसबंधो इति पाठः ।
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