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सामित्सपरूवणा २६. तिरिक्खेसु सत्तण्णं कम्माणं उक्क० प०देव कस्स ? अण्ण. पंचिं० सण्णिस्स सव्वाहि पजत्तीहि पज० सम्मा० वा मिच्छा० वा सत्तविधबंध० उक्क० जोगि० उक्क० पदे० । आउ० उ०पदे० कस्स० ? अण्ण पंचिं० सण्णि. सव्वाहि पज्ज० मिच्छा० वा सम्मादिट्टि० वा अट्टविधवं उक्क०जो० उक० पदे' । एवं पंचिंतिरि०३।
२७. पंचिंतिरि०अपज० सत्तण्णक० उक्क० कस्स० १ अण्ण० सण्णिस्स सत्तविधबंध० उ०जो० उ०पदे०० वट्ट० [ आउ० उ०पदे० कस्स ? अण्ण. सण्णिस्स अट्ठविधवं उक०जो० उक्क० पदे० । एवं सव्वअपजत्ताणं एइंदि० विगलिं० पंचकायाणं च अप्पप्पणो परियोयं णादव्वं । बादरे बादरे त्ति ण भाणिदळ । सुहुमे सुहमे त्ति ण भाणिदव्वं । पअत्तगे पञ्जत्तग' त्ति ण भाणिदव्वं । अपजत्तगे अपञ्जत्तग त्ति ण भाणिदव्वं ।
२८. मणुसेसु छण्णं कम्माणं ओघं । मोह० उक्क० सम्मा० वा मिच्छा० वा सत्तविध० उक्क०जोगि० उक्क०पदे० । एवं आउ० । णवरि अहविधबं० । एवं
२६. तिर्यञ्चोंमें सात कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर पञ्चेन्द्रिय संज्ञी जीव जो सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त है, सम्यग्दृष्टि है या मिथ्यादृष्टि है, सात प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट योगवाला है, वह उक्त कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर पञ्चेन्द्रिय संज्ञी जीव सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त है, मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि है, आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध कर रहा है
और उत्कृष्ट योगवाला है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकके जानना चाहिये।
२७. पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर संज्ञी जीव सात प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है, उत्कृष्ट योगवाला है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह उक्त कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर संज्ञी जीव आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध कर रहा है, उत्कृष्ट योगवाला है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है. वह आयकर्म प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार सब अपर्याप्त तथा एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और पाँच स्थावरकायिक जीवोंके अपने-अपने योगके अनुसार जानना चाहिए। किन्तु बादरोंका स्वामित्व बतलाते समय बादर ऐसा नहीं कहना चाहिए। सूक्ष्मोंका स्वामित्व बतलाते समय सूक्ष्म ऐसा नहीं कहना चाहिए। पर्याप्तकोंका स्वामित्व बतलाते समय पर्याप्त ऐसा नहीं कहना चाहिए और अपर्याप्तकोंका स्वामित्व बतलाते समय अपर्याप्त ऐसा नहीं कहना चाहिए।
२८. मनुष्योंमें छह कर्मो का भंग ओघके समान है। मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है, उत्कृष्ट योगवाला है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता
१. ता. प्रतौ० सम्मादिहि अवटिदबंध० उ० पदे. इति पाठः । २. ता. प्रतौ उक० उक० इति पाठः । ३. ता. प्रतौ पजत्तग पजसग इति पाठः ।
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