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जैनधर्म : जीवन और जगत् उमास्वाति के इस मूल्यवान सूत्र से यही ध्वनित होता है
"सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष-मार्गः।" (तत्त्वार्थसूत्र ११)
सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र-इन तीनो का समन्वित रूप ही मोक्ष-मार्ग है । एक मे मोक्ष मार्ग बनने की क्षमता नही है। तीनो मिलकर ही मोक्ष के हेतु हो सकते हैं। कितना घनिष्ट सवध है तीनो का । यहा सम्यग-दर्शन, ज्ञान और चारित्र क्रमश धर्म-श्रद्धा तत्त्व ज्ञान और आचरण के ही प्रतीक हैं । जहा मैके जी आदि पश्चिमी विचारक नैतिक जीवन मे आचार पक्ष को ही सम्मिलित करते हैं, वहा जैन विचारक उक्त तीनो पक्षो की अनिवार्यता मानते हैं। यही कारण है जैन आचार-दर्शन का अध्ययन करते समय तत्त्व-मीमासा और धर्म-मीमासा को उपेक्षित नहीं किया जा सकता।
जैसा कि हमने जाना आचार का स्रोत ज्ञान नही है। ज्ञान की परिणति आचार है । इसलिए आचार की शुद्धि, व्यवहार का परिष्कार और शुभ सस्कारो के निर्माण हेतु ज्ञान पक्ष की भूमिका को गौण नही किया जा सकता।
यद्यपि वर्तमान युग मे ज्ञान-विज्ञान की मूल्य-प्रतिष्ठा स्वतः सिद्ध है। उसे प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नही है । हम जिस युग मे जी रहे हैं, वह बौद्धिक विकास के उत्कर्ष का युग है। नूतन-पुरातन विद्या-शाखामओ का प्रचार-प्रसार द्रुत गति से हो रहा है। शिक्षा-जगत् मे नित नए प्रयोग हो रहे हैं, जिससे मानव-मस्तिष्क की क्षमताओ के विकास की अनन्त सभावनाए उजागर हो रही हैं । फिर भी लगता है आज शैक्षिक स्तर पर जो कुछ हो रहा है, वह पर्याप्त नही है। वर्तमान का विद्यार्थी मात्र पुस्तकीय ज्ञान मे अटका हुआ है । उसका गतव्य है-विद्यालय, महाविद्यालय या विश्वविद्यालय । उसका प्राप्तव्य है - ढेर सारी डिग्रिया। यह भी छिपा हुआ नही है कि डिग्रियो की चकाचौध मे कितना अधकार पल रहा है । उपाधियो के भार के नीचे विवेक-चेतना दबी जा रही है ।
___ "बुद्धः फल तत्त्व विचारणा च"- बुद्धि का फल है तत्त्व का अनुचिंतन, तत्त्व की खोज । तत्त्वग्राही बुद्धि व्यक्तित्व-विकास को ठोस धरातल दे सकती है। वर्तमान शिक्षा-प्रणाली मे तत्त्व-दर्शन उपेक्षित हो रहा है । जीवन-मूल्यो तथा सस्कृति के मौलिक तत्त्व को उपेक्षित कर चलने वाला समाज स्वस्थ और तेजस्वी नही बन सकता, इस दृष्टि ने देश की भावी-पीढी को सस्कारी बनाने के लिए उसे भारतीय धर्मों तथा विभिन्न दर्शनो का ज्ञान कराना आवश्यक है।
जैन-दर्शन शुद्ध अर्थ मे मोक्ष-दर्शन है, अध्यात्म का दर्शन है, फिर भी उसका ज्ञान अत्यन्त वैज्ञानिक है। अपेक्षा है वैज्ञानिक सदर्भो मे उसे