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जैनधर्म में जीव-विज्ञान
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चलने-फिरने की, सकोच -विकोच की क्षमता होती है, वे जीव त्रस, चर या जगम कहलाते हैं । दो इन्द्रिय वाले प्राणियो - कृमि आदि से लेकर पाच इन्द्रिय वाले प्राणियों तक सभी जीव इस विभाग मे आ जाते हैं ।
जहां जीवो के स और स्थावर - ये दो भेद किए जाते हैं, वहा एक सकाय स है जो कि उसके नाम से ही स्पष्ट है । वाकी पाच स्थावर हैं । ये सुख-दुख की प्रवृत्ति - निवृत्ति के लिए गमनागमन नही कर सकते । श्रसकाय का जीवत्व स्पष्ट है । पाच स्थावर काय का जीवत्व स्पष्ट नही है । इसीलिए कई दार्शनिक इनको चेतन के रूप मे स्वीकार नही करते। उनकी दृष्टि मे ये "जड" या "पाचभूत" मात्र है ।
जैन-दर्शन के अनुसार पृथ्वी, पानी, अग्नि, हवा और हरियाली सजीव हैं, चेतनावान् है । उक्त पाच स्थावर जीव-निकायो के सम्बन्ध मे "दसवे आलिय" मे स्पष्ट उल्लेख है कि ये सब अर्हत्-प्रवचन मे "चित्तमतमवस्वाया” – चेतनावान् कहे गए है । " मत" शब्द को "मात्र" मानकर भी व्याख्या की जाए तो मात्र का एक अर्थ है स्तोक - अल्प । तब इनका अर्थ होगा पृथ्वीकाय आदि पाच जीव-निकायो मे चैतन्य - स्तोक- अल्प विकसित है । उनमे श्वास-प्रश्वास, उन्मेष-निमेष आदि जीव के व्यक्त चिह्न नही
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"मत्त" का अर्थ मूच्छित भी किया गया है। जैसे चित्त के विघातक कारणो से अभिभूत मनुष्य का चित्त मूच्छित हो जाता है, वैसे ज्ञान के आवारक कर्म-पुद्गलो के प्रबल उदय से पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय जीवो का चैतन्य सदा मूच्छित रहता है । इनके चैतन्य का विकास न्यूनतम होता है ।
द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पचेन्द्रिय- पशु, पक्षी, नारक, मनुष्य, देव- इन सब मे चेतना का विकाम उत्तरोत्तर अधिक है । ससार की सव जीवजातियों में सबसे कम विकसित चेतना एवेन्द्रिय जीवो की है । पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति- ये सब एकेन्द्रिय हैं - एक स्पर्शन इन्द्रिय वाले जीव है। ये न चख सकते हैं, न सूघ सकते हैं, न देख सकते हैं और न सुन सकते है । इनका सारा काम एक स्पर्श के आधार पर चलता है । इस विभाग मे समारी जीवो का इतना वटा समूह है जो गणित की गणना का विषय नही हो सकता
जैन तत्त्व-विद्या के अनुसार- सजातीय अकुरोत्पत्ति जब तक शस्त्र द्वारा उपत न हो, सहज द्रव होना, आहार ने बढना, बिना दूसरे को प्रे ये सहज वरिमित तिथं गति तथा वन-भेदन होने पर कुम्हला जाना--- पृथ्वी, पानी, लग्नि, वायु और वनस्पति की मजीवना मध प्रमाण है । (श्री भिक्षु न्याय वणिवा ७।११)
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