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पूर्वजन्म और पुनर्जनम
वादी धारणा।
अनात्मवादी दार्शनिको ने तथा विज्ञान ने यही माना कि यह जगत् मात्र भौतिक है । पोद्गलिक है। उनकी यह मान्यता अकारण भी नहीं थी। क्योकि पुद्गल की सीमा से परे भी कुछ है, यह जानने का साधन भी उन्हे उपलब्ध नहीं था । पुद्गल की सीमा मे रहने वाला व्यक्ति आत्मा तक कैसे पहुच सकता है ? आत्मा तक पहुचे विना जीवन की लम्बी-परम्परा ज्ञान की सीमा मे नही आ सकती । प्रश्न है आत्मा का, अभौतिक तत्त्व का ।
आत्मा सूक्ष्म है, अभौतिक है, अदृश्य है । हमारे ज्ञान के साधन स्थूल हैं । उनकी शक्ति सीमित है। हमारे ज्ञान के माध्यम हैं-इन्द्रिया मन
और बुद्धि । आत्मा इन तीनो से परे है। इनके द्वारा आत्मा का ज्ञान - आत्मानुभूति नही हो सकती । ये मूर्त हैं । आत्मा अमूर्त है। मूर्त से अमूर्त को नही जाना जा सकता । अतीन्द्रिय चेतना के जागरण से ही आत्मा का अनुभव होता है । आत्मा त्रैकालिक सत्ता है ।
इसीलिए वह जन्म-जन्मान्तरो की यात्रा करती हुई, अनेक प्रकार के शरीरो का निर्माण करती है । शरीर सुख-दुख के सवेदनो का माध्यम बनता है । चेतना के विकास और ह्रास से वह प्रभावित भी होता है ।
जैसे व्यक्ति एक जीर्ण वस्त्र को त्याग कर नया वस्त्र धारण करता है वैसे ही आत्मा मृत्यु के बहाने एक शरीर को छोड दूसरे शरीर का निर्माण करती है । यह क्रम तव तक चलता रहता है, जब तक आत्मा कर्म-मुक्त न हो जाए।
पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को तार्किक आधार पर सिद्ध और असिद्ध करने के प्रयत्न हए, पर तर्क कभी सतोषप्रद समाधान नहीं दे सकता। तर्क से कभी अन्तिम प्रमाण सिद्ध नही होता। प्रमाण होता है, अतीन्द्रियज्ञान या प्रयोग-परीक्षण । वर्तमान मे अतीन्द्रिय ज्ञानी या प्रत्यक्ष ज्ञानी हमे उपलब्ध नहीं हैं, फिर भी वैज्ञानिक खोजो ने इस दिशा मे नए आयाम खोले
अव यह विषय सदिग्ध नही रहा है कि पूर्व जन्म होता है या नहीं परामनोवैज्ञानिको ने इस दिशा मे जो प्रयत्न किया है उससे धर्म का क्षेत्र भी उपकृत हुआ है । उन्होने पुनर्जन्म सम्बन्धी घटनामो का सकलन कर उन पर जो वैज्ञानिक अध्ययन-विश्लेषण किया है, उससे पुनर्जन्मवाद सिद्ध होता
उन्होने ऐसी घटनाओ का उल्लेख किया है, जिनको पढकर आश्चर्य होता है । अनेक बच्चो ने अपने पूर्वजन्म का वर्णन कर नवको चौका दिया। परीक्षा दो कमोटी पर वे घटनाए प्राय सत्य सावित हुई। उन्हें देख-सुनकर वे लोग नी विस्मित हो रहे हैं, जिनका विश्वास आत्मा और पुनर्जन्म में