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महान् जैन नरेश : मगध सम्राट श्रेणिक
श्रेणिक जैन थे या बौद्ध ?
महावीरकालीन चार राजतत्रीय राज्यो मे मगध साम्राज्य सर्वाधिक शक्ति-सपन्न था। उसके शासक थे सम्राट् श्रेणिक । हिन्दू, बौद्ध और जैनइन तीनो ही भारतीय धर्म-परम्पराओ मे उनका उल्लेख है । सभी संप्रदायो द्वारा उन्हे अपने धर्म का अनुयायी घोपित किया गया है, बौद्ध साहित्य मे तो उनके बौद्ध होने के इतने सवल प्रमाण उपलब्ध हैं कि सहसा उन पर विश्वास हुए बिना नहीं रहता। लेकिन ऐतिहासिक छान-बीन से यह स्पष्ट हो जाता है कि सम्राट् श्रेणिक पितृ-परम्परा से ही जैन थे । हो सकता है, अपने निर्वासन-काल मे वे किसी अन्य सम्प्रदाय के सम्पर्क मे गये हो, उससे प्रभावित हुए हो, और जैन-धर्म के प्रति उदासीनता रखने लगे हो । सभवत उसी उखडी हुई आस्था को जैन-धर्म मे पुन प्रतिष्ठित करने के लिए ही महारानी चेलना को भारी प्रयत्न करने पड़े थे। वह सम्प्रदाय "बौद्ध" भी हो सकता है, कोई अन्य भी। लेकिन सिवाय इसके कि वे बौद्ध धर्म से भी सहानुभूति और सौहार्द रखते थे, कोई भी पुष्ट प्रमाण नही मिलता, जिससे उन्हे बौद्ध माना जा सके । हा, यह तो हर जन-प्रिय शासक के लिए अनिवार्य होता है कि वह सब धर्मों का आदर करे और सबको फलने-फूलने का अवसर दे । इसके विपरीत ऐसे अनेक-अनेक प्रमाण तथा उल्लेख जैन प्रथो मे उपलब्ध हैं, जिनके आधार पर उनका जैन होना तो निर्विवाद सिद्ध हो ही जाता है, साथ ही साथ उनके द्वारा दी गई जैन-धर्म की अपूर्व सेवाओ की भी अवगति मिलती है । उनका वैदिक पुराणो मे विधिसार, बौद्ध पिटको मे बिम्बसार
और जैन-साहित्य मे श्रेणिक भभासार के नामो से समुल्लेख हुआ है । उनके पिता का नाम हिंदू पुराणो मे शिशुनाग या शैशुनाक तथा बौद्ध ग्रन्थो और जैन अनुश्रुतियो मे उपश्रेणिक मिलता है ।
श्रेणिक के कुमारकाल में ही उनके पिता ने किसी कारण से कुपित होकर उन्हें राज्य से निर्वासित कर दिया था। निर्वासन-काल मे उन्होने देशाटन कर देश-देशान्तरो के अनुभव प्राप्त किए। इसी काल मे वे सभवत कतिपय जैनेतर साधुओ के सपर्क मे गए। उनके भक्त बने और जन-धर्म से विद्वेष भी करने लगे, किंतु थोडे ही समय मे उन्होने अपने दृष्टिकोण और जीवन की दिशा को मोड लिया था। वे महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के पूर्व ही पुन जैन बन गये थे।