Book Title: Jain Dharm Jivan aur Jagat
Author(s): Kanakshreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 192
________________ बन्धन और उसके हेतु 69 है। मूढ व्यक्ति धर्म को सही रूप में नहीं जान सकता। अविरति माधव पदायों के प्रति व्यक्त या अव्यक्त यामक्ति या नातरिक लालसा का नाम विरति है / सम्यक दर्शन भाव मे पदार्थों के प्रति होने वाला आनरिक नारर्पण नहीं छूटता। सत्य की शोघ मे वाहर का विकर्षण या पिरा का होना अत्यन्त अपेक्षित है / अविरति के कारण आत्मा के प्रतिक्षण कर्मों का बन्धन होता रहता है / प्रमाद आथव प्रमाद का अयं हे आत्म-विकास के प्रति अनुत्माह। प्रमाद व्यक्ति को जागृत नहीं होने देता। जात्म-विस्मृति मे प्रमाद की जहभूमिका रहती है / शराब, नीद, व्यर्थ की बातें, इन्द्रिय-विषय और पाय-- ये सब प्रमाद पाप त है। मनुष्य मामान्यत इन्ही वृत्तियो की धुरी पर धूमता रहता है / ये पत्तिया उमे भीतर झा ने नहीं देती। प्रमाद जातरिफ मूर्छा है, स्वय को पिस्मृति है और है अस्ति व-बोध के प्रति अनुत्लाह / प्रमाद का पनप बोटे बिना अध्यात्म की रश्मिया चंतन्य-मन्दिर में प्रवेश नहीं पा मरती / कपाय आश्रय जो पत्ति नात्मा को उत्तप्त करती है उसे “कपाय" कहा जाता है। उपाय प्रमाद का ही एक जगहे, फिर नी आघवो मे उसका स्वतन उल्लेय है। इस कारण यह है कि जात्म-पिकात की प्रमिक अवस्थामो में प्रमाद फाइट नाम पर नी पाय प्रकम्पन चालू रहते हैं। उसके मूदमागो के प्रति नत हुए विना मुक्ति सनप नहीं। पपाय के मुख्य अग हैं -प्रोध, मान, माया और लोग / र जात्मा क गुर स्वरूप की उपलब्धि मे वाधर योग आधव जीमा पर और माया सी प्रवृत्ति को योग रहत हैं। दारे गदा में पार गल च चलना / 'मारे व्यापार / वन पर को पर पटारे, नर तरिम जमन - प्रतिधिम्म माय है। घटनाए पर एन नीतर 50ii है, सहराउन विस्तारमा नियक्ति मार लानी मियाल, अधिराम, प्रमाद और उपाय र चार सूक्ष्म बसत मानर माना 7 II न सा होता है। 217 स्थल, पति / पन बुद्धि / वानी ना तो है।

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