Book Title: Jain Dharm Jivan aur Jagat
Author(s): Kanakshreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 189
________________ १६४ जैनधर्म जीवन और जगत् फिर अपनी मा द्वारा अपने प्रति पिता के प्रगाढ स्नेह-की घटना सुनकर उसका मन ग्लानि और पश्चात्ताप से भर गया । वह तत्काल पिता को बन्धन-मुक्त करने और क्षमा मागने के लिए दौडा। उसके हाथ मे हथौडा था । श्रेणिक ने सोचा यह मुझे मारने के लिए आ रहा है। उन्होने तत्काल तालपुट विश खाकर आत्महत्या कर ली। कणिक जब निकट गया तो उनके प्राण पखेरू उड चुके थे। ___ इस प्रकार ई० पू० ५३५ मे महान् प्रतापी और धर्मात्मा नरेश एव भारत के प्रथम ऐतिहासिक सम्राट का दुखद प्राणात हुआ।

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