________________
१२४
जैनधर्म जीवन और जगत्
महात्मा बुद्ध इन्हे-सम्मादिट्ठी, सम्मास कप्पो और सम्मावायामो कहते हैं तो पारसी धर्म भी हुमता (पवित्र विचार), हुक्का (पवित्र वाणी) और हर्षता (पवित्र कर्म) पर बल देता है।
__ भगवान् महावीर ने कहा-जव दृष्टि सम्यक् होती है, ज्ञान सही होता है और आचरण पवित्र होता है तो धर्म बढ़ता है। अन्यथा धर्म घटता
आनन्द ने तथागत बुद्ध से पूछा-भते ! आपके निर्वाण के बाद आपके शरीर का क्या किया जाए ? बुद्ध ने कहा-आनन्द । इसमें सिर मत खपाओ। मैंने जो साधना-धर्म दिया है, उसका अभ्यास करो। मेरे इस शरीर को मत देखो। धर्म शरीर को देखो। जो मेरे धर्म शरीर को देखता है, वह मुझे देखता है, और जो मुझे देखता है वह मेरे धर्म शरीर को देखता
भगवान् महावीर ने गौतम से कहा- "गौतम | सत्य की शोध मे प्रमाद मत कर । मेरे से स्नेह मत कर । सम्यक ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना कर मुक्त बन ।"
यह रत्नत्रयी जितनी पुष्ट-सशक्त होगी, धर्म उतना ही शक्तिशाली
बनेगा।