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जैन जीवन प्रणाली (१) जैन गृहस्थ की आचार-सहिता
सुख प्राप्ति और दुख-मुक्ति की दिशा में प्रत्येक चेतनशील प्राणी प्रयत्न करता है । मनुष्य विकसित चेतना वाला प्राणी है। उसकी बौद्धिक क्षमता और शारीरिक क्षमता वेजोह है । वह नित्य नए आविष्कारों तथा प्रयोगो द्वारा ऐसे ससाधनो को प्राप्त करने में जुटा है, जो उसे अधिक से अधिक सुख दे सके, आराम दे सके। इस परिप्रेक्ष्य मे अनेक दार्शनिक विचार सामने आए । सम्पूर्ण सुन-भोग का हेतु क्या है ? इसके उत्तर में डाविन ने कहा-अस्तित्व की सुरक्षा के लिए सतत संघर्षशील बने रहना ही सुख का आधार-भूत तत्त्व है। इसी प्रकार फ्रायड ने काम को, मासं ने अर्थ को और नीत्से ने सत्ता को सुख का आधार माना ।
_इन महान् विचारको ने अपने विचार-दर्शन को इतने प्रभावी ढग से प्रस्तुत किया कि वैयक्तिक और जागतिक स्तर पर मनुष्य-समाज की सारी अवधारणाए बदल गई। इस सुखवादी विचारधारा के माघार पर अनेक प्रकार की जीवन-प्रणालिया विकसित हुई। इस सन्दर्भ में जन-दर्शन नई दिशा प्रदान करता है। भगवान् महावीर ने कहा - सुख का आधार है अध्यात्म । सघर्षशीलता, कामना, अर्थ और सत्ता -ये समग्र शक्तिया धर्म से नियमित बनकर ही मानव-जाति के लिए वरदान बन सकती हैं। दुखमुक्ति और सुख-समृद्धि की पौध अध्यात्म के ठोस धरातल पर ही सभव है। अध्यात्म की भूमिका पर इस जीवन-शैली को हम 'जैन जीवन-प्रणालो' कह सकते हैं। उसके आधारभूत तत्त्व हैं-सयम और सदाचार। महावीर ने कहा
असयम परित्यज्य, सयमस्तेन सेव्यताम् ।
असयमो महद् दुख, सयम सुखमुत्तमम ॥ सबोधि १४१४३
मसयम दुख है सयम सुख है, इसलिए असयम को त्यागो और सयम का आचरण परो ।
गस्थ हो या मन्यासी ~ सब मुक्त हो सकते हैं, यदि वे अनुत्तन सयम का पालन करते हो । मन्यामी मयम के शिखर पर स्थिर होता है उमपी प्रत्येक प्रवत्ति अध्यात्म से अनुप्राणित होती है, किन्तु एक गृहस्य । लिए भी सयम का बहुत बड़ा मून्य है । सयम के द्वारा जीवन मूल्यवान् वन