Book Title: Jain Dharm Jivan aur Jagat
Author(s): Kanakshreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 176
________________ मागम वाचना इतिहास-यात्रा १५१ शुद्ध परपरा रही थी। श्री देवद्धिगणी सत्ताबीसवें आचार्य हुए हैं। अत श्वेताम्बर आम्नाय की सभी शाखा-प्रशाखाओ के लिए वे नमस्य हैं। उनके प्रयत्न प्रणम्य हैं। यह हुई आगम-वाङ्मय की सुरक्षा के उपायो की चर्चा । जैन समाज ही नहीं, पूरा अध्यात्म जगत् उन आचार्यों का ऋणी है, जिन्होने श्रुत-ज्ञान की मशाल को समय के उस नाजुक दौर मे भी अपनी श्रद्धा की ओट मे रखकर बुझने से उवार लिया, जब परिस्थितियो का झझावात उसे वुझाने की पूरी तैयारी में था । पाठको के मन मे एक प्रश्न जरूर उठ रहा होगा कि पुस्तकारूढ़ तो दसवी शताब्दी मे किया गया। इससे पूर्व ज्ञान की इस विशाल थाती को मात्र कठाग्र रखकर या स्मृति-कोष्ठको मे भरकर कैसे सुरक्षित रखा गया ? इस प्रश्न का समाधान शरीर-शास्त्रीय और परा-मानस शास्त्रीय अध्ययन से स्पष्ट हो सकता है । आधुनिक खोजो ने यह सिद्ध कर दिया है कि मानव मस्तिष्क शक्ति का अक्षय कोष है । उसमे ऐसे तत्त्व निहित हैं जिनके आधार पर बीस अरब पृष्ठो से भी अधिक ज्ञान-भडार को सुरक्षित रखा जा सकता है। कुछ वैज्ञानिको ने यहा तक घोषणा की है कि मनुष्य-मस्तिष्क मे इतने स्मृति-प्रकोष्ठ हैं, जिनमे समग्र विश्व का साहित्य सगृहित किया जा सकता है। दुनिया के सभी पुस्तकालयो का ज्ञान भरा जा सकता है। किन्तु देश, काल आदि परिस्थितियो की प्रतिकूलता ने मानवीय मस्तिष्क की उन क्षमताओ पर तीव्र प्रहार किया, जिससे स्मृति क्षीण हुई और उसके साथ प्रवाहित होने वाली ज्ञान-गगा की धारा भी सिमटने लगी। सर्वनाश के उन क्षणो मे भी जिन्होंने अद्वितीय आत्मविश्वास के साथ आगम-वाङ्मय के प्रकाश को बचाया, श्रुत की स्रोतस्विनी के सवाहक बने, वे महान् आचार्य जैन-शासन मे अभिनदनीय बन गए । उनके सानिध्य मे सपन्न होने गली आगम-वाचनाए इतिहास की अमर गाथाए वन गई । वर्तमान में युगप्रधान वाचना-प्रमुख गणाधिपति गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ के नेतृत्व मे आगम-सपादन का अद्भुत कार्य हो रहा है । यह भी अपनी कोटि की अपूर्व वाचना है। इस वाचना का क्रम चाल है । अथाह आध्यात्मिक ऊर्जा के महास्रोत गुरुदेव श्री तुलसी और भारतीय मनीषा के शिखरपुरुप आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रखर पुरुषार्थ के साथ उनके अनेक प्रबुद्ध शिष्य-शिष्याओ के श्रम से सपादित आडगम वामय, निष्पक्ष दृष्टि से निर्धारित शुद्ध पाठ, सस्कृत रूपातरण, आधुनिक हिन्दी अनुवाद तथा विस्तृत पाद-टिप्पणो के साथ जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित होकर नव विद्वानो के हाथो में पहुचा तो उन्होने इसे बीसवी सदी की महान् उपलब्धि के रूप मे स्वीकार किया। आगम-सपादन के इस महान् अनुष्ठानो को निर्विवाद रूप से 'पाचवी आगमवाचना' कहा जा सकता है ।

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