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आगम वाचना इतिहास-यात्रा
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वधि मे फिर बारह वर्षीय भयकर दुष्काल पहा । इससे जन-जीवन अस्तव्यस्त और सत्रस्त हो उठा । तपस्वी और धृति-सपन्न मुनि सघ भी इससे अप्रभावित नहीं रह सका । भिक्षा का मिलना अत्यन्त कठिन हो गया । अनेक श्रुतधर आचार्यों और मुनियो ने वैभार गिरि और कुमार-गिरि पर्वत पर अनशन स्वीकार कर आत्मार्थ सिद्ध किया । कुछ मुनि सयम-जावन के निर्वाह हेतु दूर देशो की ओर चल पडे । जो रहे, वे उचित भिक्षा-वृत्ति के अभाव मे आगमो का अध्ययन, अध्यापन, ग्रहण और प्रत्यावर्तन नहीं कर सके । ऐसी स्थिति मे धीरे-धीरे श्रुत का नाश होने लगा। अतिशायी श्रुत तो बच ही नही सका, अगो और उपागो के सपूर्ण अर्थ के ज्ञाता मुनि नही बचे । सूत्रागम का भी बहुत बडा भाग नष्ट हो गया ।
दुष्काल समाप्त हुआ । वातावरण अनुकूल बना, तब उस समय के समर्थ आचार्य स्कदिल के नेतृत्व मे मथुरा में सामूहिक आगम-वाचना हुई । जिन-जिन श्रमणो को आगमो का जितना भाग याद था, उसका अनुसधान कर व्यवस्थित किया गया । इस प्रयत्न से कालिक सूत्रो और पूर्वगत के कुछ अशो को सकलित किया गया। यह वाचना आर्य स्कदिल के नेतृत्व तथा मथुरा में होने के कारण स्कदिली-वाचना या माथुरी-वाचना कहलाई।
___इस वाचना मे मधुमित्र, गधहस्ती आदि डेढ सो श्रमण उपस्थित थे। मधुमित्र और गधहस्ती आर्य स्कदिल के मेधावी गुरु भाई मुनि थे। परस्पर श्रुत के आदान-प्रदान द्वारा टूटी हुई श्रुत-शृखला को जोडने तथा अवशिष्ट श्रुत-सपदा के सरक्षण का भगीरथ प्रयत्न किया गया । मतातर के अनुसार उस समय तक श्रृत नष्ट नही हुआ था । वह विद्यमान था, किन्तु श्रत के अर्थ की विस्मृति हो गई यथा आर्य स्कन्दिल के सिवाय शेष श्रुतधर मुनि दिवगत हो गए थे । अत श्रुत की अर्थ-परस्परा को चिरजीवी बनाए रखने के लिए युग प्रधान आर्य स्कन्दिल ने उस सकलित श्रुत के अर्थ की अनुशिष्टि दी । अनुयोग का प्रर्वतन किया। यह अनुयोग-प्रर्वतन ही स्कन्दिली या माथरी वाचना कहलाया। गधहस्ती ने इस वाचना का पूरा विवरण लिखा। मथुरा के ओसवाल वशज सुश्रावक पोपाल ने उस विवरण समेत सपूर्ण सूत्रो को ताड-पत्र पर लिखवाकर श्रमण सघ को समर्पित किया। स्मृतिपरम्परा से सुरक्षित श्रुत पहली वार लिपिबद्ध हुआ । ठीक इसी समय आचार्य नागार्जुन की अध्यक्षता मे श्रमण सघ वल्लभी मे एकत्रित हुआ। श्रुत का आदान-प्रदान हुआ । श्रमण वीच-बीच मे वहुत-सा श्रुत भूल चुके थे। चिंता हुई, श्रुतनिधि सपूर्णत नष्ट न हो जाए, इस दृष्टि से उस समय तक जितना श्रुत वचा था, उसे सकलित कर लिया गया । यह वल्लभी वाचना अथवा नागार्जुनीय वाचना कहलाई। देवद्धिगणी क्षमाश्रमण से भी आयं स्कन्दिल को