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आगम वाचना इतिहास - यात्रा
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श्रुत सेवा के तीव्र प्रयत्नो मे मुनि सघ के महासम्मेलन बुलाए गए और आगमों का सामूहिक वाचन किया गया । इसलिए वे प्रयत्न जैन सघ मे आगम-वाचना के रूप में इतिहास - प्रसिद्ध हो गए । वे वाचनाए कब, किन परिस्थितियो और किन आचार्यों के नेतृत्व मे सम्पन्न हुईं, इसके सबंध मे । वीर - निर्वाण की पहली मध्य आगम वाङ्मय
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सक्षिप्त जानकारी करेंगे प्रस्तुत निबध के माध्यम से सदी से लेकर वी नि के ९५० अथवा ९९३ वर्ष के के सकलन और व्यवस्थितीकरण की दृष्टि से पाच हुईं ।
प्रमुख वाचनाए सपन्न
प्रथम वाचना
प्रथम आगम वाचना वी नि की दूसरी शताब्दी ( वी नि १६०) मे हुई । उस समय श्रमण संघ का मुख्य विहार क्षेत्र मगध, आज का बिहार प्रदेश था । मगध राज्य मे १२ वर्षो तक लगातार दुष्काल पडा । उससे श्रमण-संघ को काफी कठिनाइयों से गुजरना पडा । मुनि-चर्या की कठोरता, नियमो की जटिलता, भिक्षा की अनुपलब्धि - इन सब कारणो से अनेक श्रुतधर मुनि दिवगत हो गए, अनेक रुग्ण हो गए। श्रुतधर मुनियो का स्वास्थ्य क्षीण हुआ । स्मृति क्षीण हुई। फलत श्रुत की धारा छिन्न-भिन्न हो गई ।
दुष्काल की समाप्ति पर विच्छिन्न श्रुत को सकलित करने के लिए वीनि १६० के लगभग, श्रमण- सघ के आचार्य पाटलीपुत्र ( मगध ) मे एकत्रित हुए । इस महासम्मेलन का नेतृत्व कर रहे थे महामनस्वी आचार्य स्थूलभद्र । उनके निर्देशन मे सभी श्रमणो ने मिलकर ग्यारह अगो का प्रामाणिक सकलन किया । बारहवा अग दृष्टिवाद किसी भी श्रमण को याद नही था । इस समय दृष्टिवाद के ज्ञाता एक मात्र आचार्य भद्रवाह बचे थे । वे नेपाल मे महाप्राण ध्यान की साधना मे निरत थे । श्रुत की इस अपूरणीय क्षति को पूरा करने प्रखर मेधावी आर्य स्थूलभद्र विशाल श्रमण- सघ के साथ नेपाल पहुचे । सघ के अनुनय भरे निवेदन को स्वीकार कर आचाप भदवाहु ने स्थूलभद्र आदि श्रमणो को दृष्टिवाद की वाचना देना प्रारम्भ किया । धृतिदुर्बलता के कारण स्थूलभद्र के सिवाय पूर्व श्रुत की आराधना मे सभी मुनि असफल हो गए । मात्र स्थूलभद्र ही चौदह पूर्वो का ज्ञान प्राप्त कर सके । साध्वी वहनो को चमत्कार दिखाने के लिए उन्होने शक्ति- प्रदशन किया, इस प्रमाद के प्रायश्चित्त स्वरूप आचार्य भद्रबाहु ने उन्हे अतिम चार पूर्वी की अर्थ - वाचना नही दी । अत अर्थ की दृष्टि से अन्तिम श्रुत केवली भद्रबाहु हुए । उनके स्वर्गवास (वी नि १७० ) के पश्चात् अर्थत अतिम चार पूर्वो का विच्छेद हो गया ।