Book Title: Jain Dharm Jivan aur Jagat
Author(s): Kanakshreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 167
________________ १४२ जैनधर्म जीवन और जगत् के साथ आर्थिक और राजनीतिक स्थितियो की भी सम्यक् जानकारी मिलती है । समाज के पिछडे और मध्यम वर्ग से व्यक्तिश सम्पर्क होने के कारण सामाजिक स्थितियों का यथार्थ रेखा-चित्र अकित किया जा सकता है । इन सब सदर्भों मे झाकने से पदयात्रा का महत्त्व सहज समझ मे आ सकता है । परिव्रजन का उद्देश्य जैन मुनियों के विहार का उद्देश्य मात्र पर्यटन या विश्व - दर्शन नही होता । उनका उद्देश्य है - जन-जन की अन्तश्चेतना के साथ तादात्म्य स्थापित करना । उनकी वृत्तियो और प्रवृत्तियों का सूक्ष्मता से अध्ययन और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर उनकी समस्याओ का स्थायी समाधान प्रस्तुत करना । उन्हे नियत्रित और सतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देना । जैन मुनि पाव-पाव चल कर सूरज की तरह गाव-गाव और घर P घर मे नैतिकता और आध्यात्मिकता की रोशनी फैलाना चाहते हैं । वे इसी धरती की मिट्टी मे चरित्र निष्ठ और परिपूर्ण व्यक्तित्वो की फसल उगाना चाहते हैं, न कि आकाशमागं से किसी दिव्य-ज्योति का अवतरण । यह सब पद-यात्रा के द्वारा जन-सामान्य के साथ सम्पर्क - साधने से सहज सभव हो सकता है । जैन मुनि भ्रमणशील होते हैं । आज यहा तो कल वहा । न कोई स्थान, न मकान | हा वे जहा पडाव डालते हैं, वही उनका मकान बन जाता है । ' बताये क्या अपना नाम स्थान, जहा ठहरें, वही अपना मकान ।' कितना सुख होता है इस फकीरी मे । ममत्व - मुक्ति की इस साधना मे न कोई व्यक्ति बाधक बनता है, न स्थान । इप अनियत वास के कारण न किसी व्यक्ति के साथ उनके रागात्मक सबध जुडते हैं, न क्षेत्र-विशेष के साथ । इसीलिए वे वायुवत् अप्रतिबद्ध-विहारी होते हैं । जिनके अपना कोई घर-द्वार नही होता, वे अनावश्यक वस्तु- सग्रह से सहज ही बच जाते हैं । जैन मुनि वाहन का प्रयोग नही करते, न बैठने के लिए, न भार ढोने के लिए | वे अपना सामान अपने कधो पर ही लेकर चलते हैं, इसलिए वे उतना ही सामान रखते हैं जितने की अनिवार्य अपेक्षा होती है । इससे उनका लाघव-धर्म पुष्ट होता है । ब्रह्मचर्यं की साधना मे भी पाद - विहार सहयोगी बनता है । 'आयारो' मे उल्लेख है— कदाचित् मुनि का मन वासना से आक्रात हो जाए, तो वह खाद्य सयम, यासन, कायोत्सर्ग, खड़े-खडे ध्यान आदि उपायो से उसे समाहित करने का प्रयत्न करे। यदि इन समग्र उपायो से भी मन स्थिर और

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