________________
जैनधर्म : जीवन और जगत्
तत्त्व (element) अपरिवर्तनीय है । एक तत्व दूसरे तत्त्व के रूप मे नही बदल सकता किन्तु अब तेजोद्गरण ( रेडियो एक्टीविटी) आदि के अनुसानो से सिद्ध हो चुका है कि तत्त्व परिवर्तित हो सकता है । जैसे यूरेनियम के एक अणु मे से जब तीन "अ" कण - विच्छिन्न हो जाते हैं तो वह एक रेडियम अणु के रूप मे बदल जाता है । इसी प्रकार जब रेडियम का एक अणु पाच "अ" कणो मे विभाजित हो जाता है तो वह "सीसा" के अणु के रूप मे वदल जाता है । यह है पुद्गल - परमाणुओ के विश्लेषण से होने वाला परिणमन । इसी प्रकार परमाणुओं के सश्लेष – सयोग से भी परिणमन होता है । जैसे नाइट्रोजन के एक अणु के न्यूक्लियस मे जब एक "अ" कण मिल जाता है तो वह ऑक्सीजन का एक अणु बन जाता है ।
सक्रियता और शक्ति
८५
जीव की भाति पुद्गल भी सक्रिय है और अनत शक्ति सम्पन्न है । पुद्गल की क्रिया को शास्त्रीय भाषा मे परिस्पद कहते हैं । वह स्वत' भी होता है और अन्य पुद्गलो या जीव की प्रेरणा से भी होता है। पुद्गल की गति - त्रिया अप्रतिहत होती है । वह पहाड़ के आर-पार निकल सकता है । अणुओ का परस्पर टकराव और मिलन भी होता रहता है । प्रत्येक भौतिक पदार्थ से निरंतर रश्मिया या तरगें निकलती रहती हैं । यह भी उसकी सक्रियता का प्रतीक है |
" टनेलिंग ऑफ इलेक्ट्रोन्स" सिद्धात के आधार पर एक नया तथ्य प्रकाश में आया है कि यदि दो वस्तुए परस्पर छू रही हो या बहुत आसपास रखी हो तो एक वस्तु से दूसरी वस्तु मे इलेक्ट्रोन्स की उछल-कूद मचने लगती है । इसे वैज्ञानिको ने "टनेलिंग फिनामिना " कहा है। जैसे मुम्बई या पूना के सपाट मैदानो मे पर्वतीय सुरग के माध्यम से रेल्वे का गमनागमन होता है । वैसे ही वस्तुगत अणुओ (इलेक्ट्रोन्स) का गमनागमन होता है । यह सारा कार्य पुद्गल के मौलिक गुण गलन - मिलन के कारण होता है । भौतिक विज्ञान भी पदार्थ के इस स्वभाव को स्वीकृत करता है और उसके लिए दो शब्दो का प्रयोग करता है - Fusion और Fision फ्यूजन का अर्थ है"मिलना" और फिजन का अर्थ है- " गलना" ।
विज्ञान के अनुसार प्रकाश की गति एक लाख प्रति सैकेण्ड । किंतु जैन दर्शन के अनुसार पुद्गल की है । वह काल के सूक्ष्मतम अश ( एक समय ) मे लोक के सकता है ।
छियासी हजार मील गति इससे भी तीव्र एक छोर तक पहुच
पुद्गल जनत शक्ति सम्पन्न है । " | आई" का शक्ति सिद्धात भी इसका सवादी है । उसके अनुसार एक परमाणु से ३,४५,८०० केलोरी शक्ति