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जैनधर्म जीवन और जगत् कोई बौद्धिक बात नहीं है। यह मात्र मान्यता का प्रश्न है। किसी भी मान्यता के पीछे व्यक्ति की वृत्तिया काम करती हैं। सम्प्रदाय, सगठन, सस्थान आदि की अपनी-अपनी मान्यताए होती हैं । प्रत्येक मान्यता के पीछे भिन्न-भिन्न वृत्तिया रहती हैं। जैन मनोविज्ञान की दृष्टि से जातिवाद और सम्प्रदायवाद के पीछे मूल वृत्ति है राग। जहा राग होता है, वहा द्वेष निश्चित होता है । अपनी जाति के प्रति राग व्यक्ति मे अहभाव भरता है और अन्य जाति के प्रति द्वेष तथा घृणा का वातावरण निर्मित करता है। राग और द्वष को प्रकट होने के लिए किसी-न-किसी माध्यम की जरूरत रहती है । भारतीय समाज मे इस वृत्ति को पनपने का मौका मिला जातिगत भेद-भाव के माध्यम से । पश्चिमी देशो मे जाति की समस्या नहीं है तो वहा रग-भेद की समस्या बहुत विकराल है। रग के आधार पर काले और गोरेये दो वर्ग बन गये और सघर्ष का अन्तहीन सिलसिला चाल हो गया। इस समस्या ने राजनीति, समाजनीति, अर्थनीति तथा शिक्षानीति को प्रभावित किया है । रग के आधार पर मनुष्यजाति को विभक्त कर आपसी विद्वेष भोर वैमनस्य को बढ़ावा दिया है । सचाई यह है कि किसी को हीन मान कर अपनी उच्चता कभी स्थापित नही की जा सकती।
वर्तमान की चिंतन-धारा के अनुसार जातिवाद का समर्थन करना न बुद्धिमानी है, न तर्क-सगत है, न कानून-सम्मत है और न न्याय-सगत । जाति के आधार पर किसी को हीन मानना, अछूत मानना, मानवाधिकार का स्पष्ट हनन है।
जाति को अतात्विक मानने वाले दर्शनो ने जैसे मनुष्य-जाति एक है" का घोप दिया, वैसे जाति को तात्त्विक-मौलिक मानने वाले ईश्वरवादी दर्शनो ने भी उत्तरकाल मे यह घोषणा की कि मनुष्य अच्छा बुरा कर्मों से होता है । जाति मे नही । फिर सिद्धातत जो स्वीकार किया गया वह व्यवहार मे नही आया। व्यावहारिक धरातल पर जातिवाद का विप-वृक्ष वैसे ही फलता-फूलता रहा । भारतीय इतिहास के पृष्ठ ऐसी घटनाओ से भरे पडे हैं, जहा जातीयता के नाम पर दानवता को खुलकर खेलने का अवसर मिला। इन्सान के द्वारा उन्मान के साथ करता और निर्दयता पूर्ण व्यवहार हुआ।
जातीयता के अभिशाप से पीडित न जाने कितने सूतपुत्र कर्ण और भीलपुष एकलव्य आज भी करुण पुकार कर रहे हैं कि
फौन जन्म लेता किस कुल मे आकस्मिक ही है यह बात छोटे फुल पर हाय ! यहा होते रहते कितने माघात । हाय जाति छोटी है तो फिर सभी हमारे गुण छोटे । जाति वटी तो वटे बनें, फिर लाख रहे चाहे खोटे । भाज जहा मस्तित्व, समन्वय और ममानता के सिद्धात राष्ट्रीय