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जैनधर्म : जीवन ओर जगत्
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करने वाला एक आतरिक नियम है । आतरिक व्यवस्था है । जो कर्मवाद को नही जानता, वह धर्म को भी नहीं जानता । जो चेतना और कर्म की व्याख्या नही कर सकता, वह धर्म की व्याख्या नही कर सकता । धर्म है अन्तरजगत् में प्रवेश । वहा जाने के लिए उन नियमो को भी जानना आवश्यक है । जो आत्मा को बाघ रहा है, वह है कर्म । कर्म-वन्ध और उसके विपाक को समझने वाला व्यक्ति सहज ही अपने आपको कर्म-वन्धन के निमित्तो से बचा सकता है ।