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जैनधर्म . जीवन और जगत्
तक पुनर्जन्म और पूर्वजन्म का जो सिद्धात मात्र मान्यता या दार्शनिक चर्चा का विषय रहा था, बीसवी सदी के उत्तरार्ध से वह भी प्रयोग और परीक्षण की अणु-भट्टी मे तपाया जा रहा है। आधुनिक विज्ञान की एक शाख। है-परामनोविज्ञान । इस पर रिसर्च करने वाले इस तथ्य तक पहुचे हैं कि जीवन की एक लम्बी परम्परा है। उसका अतीत भी है और भविष्य भी है । उसके कुछ बुनियादी हेतु हैं, जैसे
शिशुकालीन अवस्था मे विलक्षण प्रतिभा का होना ।
शिशु-अवस्था से ही विभिन्न रुचियो अथवा भय आदि के भावो का होना ।
देह-मुक्त आत्माओ से सम्पर्क स्थापित करना और उसके सदेशो को प्राप्त करना।
माध्यमो अथवा सिद्ध पुरुषो द्वारा व्यक्ति विशेष को देखकर उसके पूर्वजन्मो का कथन करना ।
इस क्षेत्र मे भारत तथा विदेशो मे बहुत बड़ा काम हो रहा है। इस विषय का साहित्य प्रचुर मात्रा में प्रकाशित हुआ है। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि सभी दर्शनो की धार्मिक परपराए जो आत्मा के आवागमन को स्वीकार करती हैं, वे सब मनोविज्ञान और परामनोविज्ञान की ऋणी हैं, जिसके अनुसधानात्मक आलोक मे प्राचीन धार्मिक मान्यताए सही सिद्ध हो रही हैं।
पुनर्जन्मवाद की स्वीकृति मे ही आत्मवाद, कर्मवाद और निर्वाणवाद की सार्थकता है। यही आचार-शास्त्र का आधार है। पवित्र जीवन की प्रेरणा है । पवित्र आचार-व्यवहार जहा व्यक्तिगत सुख-शाति का हेतु है। वहा वह सामाजिक और राष्ट्रीय चरित्र को प्रभावित कर उसे स्वस्थता प्रदान करता है।
संवर्म १ जैन-दर्शन मनन और मीमासा, पृष्ठ २९५
२. श्री भिक्ष न्यायकणिका ७/९-१० ३ घट-घट दीप जले, पृष्ठ ५३-६१ ४ श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ, खड ४, पृष्ठ ३७८