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जैनधर्म जीवन और जगत्
करना - यह भी एक सत्प्रवृत्ति है, पुण्य - बन्धन का हेतु है । इस सहयोग - भावना से सद्गृहस्थ सतो की अध्यात्म-साधना में आलम्बन बनते हैं | नवतत्त्वो के विवेचन मे पुण्य-तत्त्व के नौ भेद बताए गए है, यह उक्त दृष्टिकोण का फलित है । जिस निमित्त से पुण्य का बन्धन होता है, वह पुण्य उसउस नाम से अभिहित हो गया । जैसे सयमी को शुद्ध अन्न-दान से होने वाला शुभ, कर्म - बन्ध अन्न-पुण्य कहलाता है, वैसे ही पान-पुण्य लयन-पुण्य, शयनपुण्य, वस्त्र- पुण्य, मन-पुण्य, वचन-पुण्य, काय पुण्य और नमस्कार पुण्य ज्ञातव्य है । इसका अर्थ यह नही है कि पुण्य - बन्धन के हेतु इतने ही हैं । वास्तव मे पुण्य-बन्धन के हेतु अनेक हैं । यह विवेचन विशेष तो विवक्षा के सदर्भ मे किया है ।
पुण्य का हेतु सत्प्रवृत्ति - एकत्व की विवक्षा से प्रतिपादन करें तो कह सकते हैं, पुण्य - बधन का एक मात्र निमित्त है - सत्प्रवृत्ति । उसके बिना पुण्य का बन्धन नही होता । सत्यप्रवृत्ति मोक्ष का उपाय है इसलिए वह धर्म है । धर्म के बिना पुण्य नही होता । जैसे अनाज के साथ "खाखला " - तुष पैदा होता है, पर तुष के लिए खेती नही की जाती, वह प्रासंगिक फल है । वैसे ही धर्म के साथ पुण्य का बन्धन होता है पर पुण्य के लिए धर्माराधना विहित नही है । धर्म - साधना आत्म शुद्धि के लिए की जाती है, पुण्य उसके साथ सहज होता है । वह धर्माचरण का प्रासंगिक फल है ।
कुछ परम्पराए पुण्य का बन्धन स्वतन्त्र मानती हैं, उनके अभिमत से मिथ्यात्वी के धर्म नही होता, पर पुण्य का बन्धन होता है । तत्त्व- चितन की कसौटी पर यह मान्यता खरी नही उतरती । यद्यपि मिथ्यात्वी के सवर धर्म नही होता, पर निर्जरा धर्म तो होता ही है, वही उसकी आतरिक शुद्धि का निमित्त है । अन्यथा मिध्यात्वी प्राणी सम्यक्त्व को कैसे प्राप्त कर सकता है?
धर्म और पुण्य
धर्म के बिना पुण्य नही होता । पुण्य का धर्म के साथ अविनाभावी सम्बन्ध है, फिर भी धर्म पुण्य एक नही हैं । दोनो सर्वथा भिन्न हैं ।
धर्म जीव है, क्योंकि वह जीव की प्रवृत्ति है । पुण्य अजीव है, क्योकि वह शुभ कर्म है । कर्म पौद्गलिक है, इसलिए अजीव है ।
धर्म मुक्ति का हेतु है, पुण्य बन्धन है अत ससार का हेतु है । धर्म, आत्मा की पर्याय है, पुण्य पुद्गल की पर्याय है । निर्जरा-धर्म सत्क्रिया है, पुण्य उसका प्रासंगिक फल है ।
पाप-अशुभ कर्मोदय
अशुभ कर्मों के उदय को पाप कहते हैं । ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय,