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जैनदर्शन • जीवन और जगत्
प्रश्न ही नहीं उठता।
अन्य द्रव्यो की भाति पुद्गल-द्रव्य के भी अनन्त पर्याय हैं। उनमे कुछ पर्याय ऐसे हैं जिनका प्राणी जगत् के साथ विशेष सबध है।
__ शब्द, बधन, सूक्ष्मता, स्थूलता, सस्थान (आकृतिया) भेद, अहकार धूप, धाया, चादनी ये सब पुद्गल के विशिष्ट पर्याय हैं । ध्वानि भी पौद्गलिक है।
सत् का एक अपरिहार्य लक्षण है-अर्थ क्रियाकारित्व-प्रत्येक पदार्थ अपनी अर्थ-क्रिया से स्वय को तथा अन्य को प्रभावित करता रहता है-इसे उपग्रह या उपकरण भी कहते हैं । पुद्गल द्रव्य जहा पुद्गल का उपकार करता है वहा जीव द्रव्य का भी उपकार करता है । जीव और पुद्गल का अनादिकालीन सबध है । जीव की समस्त सासारिक अवस्थाए
और क्रियाए पुद्गल सापेक्ष हैं । आहार, शरीर-निर्माण, इन्द्रिय-सरचना, श्वास-प्रश्वास, भाषा और मानसिक नितन के लिए वह निरन्तर पुद्गल को ग्रहण करता रहता है, यानी जीव की ये सब क्रियाए पौद्गलिक हैं । पुद्गलो से सम्पादित होती हैं।
पुद्गल ससारी जीवो के उपभोग में कैसे आते हैं, यह समझने के लिए पुदगल की विभिन्न बर्गणाओ से परिचित होना भी जरूरी है । वर्गणा का अर्थ है--सजातीय पुद्गलो के विभिन्न वर्ग - श्रेणिया । वे मुख्यत आठ
० औदारिक वर्गणा-स्थूल-शरीर के रूप में परिणत होने वाले
पुद्गल । जीवो के जितने दृश्य शरीर हैं वे सब औदारिक हैं । • वैक्रियवर्गणा- वैक्रिय शरीर के रूप में परिणत होने वाले
पुद्गल । वैक्रिय शरीर नारक और देवो के होता है । योगी लोग योगज विभूति के द्वारा विभिन्न रूपो का निर्माण करते हैं, वह भी
वैक्रिय शरीर है। • आहारक वर्गणा -विचारो का सक्रमण करने वाले शरीर के रूप
मे परिणत होने वाले पुद्गल । ० तेजस् वर्गणा-विद्युतीय शरीर के रूप में परिणत होने वाले
पुद्गल । ० कार्मण वर्गणा -कर्म-शरीर के रूप में परिणत होने वाले
पुद्गल । • भाषा वर्गणा --भाषा के रूप में परिणत होने वाले पुद्गल । ० मनोवर्गणा --मन के रूप मे परिणत होने वाले पुद्गल । ० श्वासोच्छवास वर्गणा- श्वास-प्रश्वास के रूप में परिणत होने
वाले पुद्गल ।