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जैनदर्शन · जीवन और जगत् जैन-पुद्गल विज्ञान मे उन पुद्गलो को चतु स्पर्शी पुद्गल कहा जाता
स्पर्श-परमाणु मे स्पर्श दो ही होते हैं । शीत और उष्ण मे से कोई एक तथा स्निग्ध और रुक्ष मे से कोई एक । परमाणु पुद्गल की सूक्ष्मतम इकाई है । अत उसमे मृदुता-कठोरता, हलकापन तथा भारीपन असम्भव
गंध -गध के दो प्रकार हैं-सुगध और दुर्गंध ।
वर्ण (रग)-वर्ण के पाच प्रकार हैं-कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत । दो या दो से अधिक रगो के सम्मिश्रण से अनेक नये रग बन जाते हैं, किन्तु उनका अन्तर्भाव इन पाच रगो मे ही हो जाता है ।
रस-रस पाच प्रकार के हैं-मधुर, अम्ल, कद्र, कला और तिक्त।
पुद्गल के चार भेद हैं-स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाण । इनमे भी मौलिक भेद दो ही हैं स्कन्ध और परमाणु । देश और प्रदेश ये कल्पिक भेद हैं।
स्कन्ध-परमाणुओ के एकीभाव को स्कन्ध कहते हैं । दो परमाणुओ के सयोग से जो स्कन्ध बनता है, द्विप्रदेशी स्कन्ध है। इसी प्रकार वे त्रिप्रदेशी दसप्रदेशी, सख्येय प्रदेशी, असख्येय प्रदेशी, असख्यात तथा अनन्तप्रदेशी स्कन्धो का निर्माण करते हैं । एक स्कन्ध के टूटने से भी अनेक स्कन्ध बन जाते हैं, जैसे --अनेक शिलाखड । अनेक स्कन्ध मिलकर भी एक स्कघ का निर्माण कर देते हैं, जैसे-अनेक तन्तुओ से निर्मित अखड वस्त्र ।
देश-वस्तु के अविभाज्य काल्पनिक भाग को देश कहते हैं । जैसेपाच मीटर कपडे का एक तिहाई भाग, दो तिहाई भाग इत्यादि।
प्रदेश -वस्तु के अविभाज्य-परमाणु जितने भाग को प्रदेश कहते हैं । इसे वस्तु के घटक तत्त्वो की अन्तिम ईकाई कह सकते हैं ।
परमाण-वस्तु का वह सूक्ष्मतम कण जो उससे पृथक् हो गया है । परमाणु इतना सूक्ष्म है कि उसको तोडा नही जा सकता । उसके अश नही हो सकते । प्रदेश और परमाणु मे इतना ही अन्तर है कि प्रदेश वस्तु से अपृथक् होता है और परमाणु पृथक् । परमाणु को अविभागी, प्रतिच्छेद भी कहते हैं । वह अतिसूक्ष्म है ।
स्वतत्र परमाणु आखो से नही देखा जा सकता । जिसे हम देखते हैं, वह पुद्गल-समूह है । स्कध है । आधुनिक भौतिक विज्ञान भी इसका सवादी है । वैज्ञानिक मान्यता है कि जब हम परमाणु को देखते हैं तो निश्चित ही किसी-न-किसी शक्तिशाली भौतिक उपकरण का प्रयोग करते हैं। वह उपकरण किसी न किसी रूप मे परमाणु को प्रभावित करता है, उसमे परिवर्तन