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निम्नाकित चित्र से यह और स्पष्ट हो जाएगा
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जैनधर्मं जीवन और जगत्
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मस्तिष्क में दश प्राण प्रेक्षा केन्द्र
प्राण शक्ति का विकास भी पर्याप्तियो के विकास और परिष्कार के विना सभव नही है |
आहार - सयम, योगासन, इन्द्रिय-सयम, श्वास - सयम, श्वास- प्रेक्षा, मौन, स्वर यत्र का कायोत्सर्ग तथा ध्यान-योग – ये क्रमश छहो पर्याप्तियो या शक्ति-स्रोतो को पुष्ट मोर निर्मल बनाने के उपाय हैं । आध्यात्मिक
वैज्ञानिक व्यक्तित्व के निर्माण में उक्त उपाय अह भूमिका निभा सकते हैं ।
संदर्भ
१ जैन सिद्धात दीपिक - ३ / १२-१३ ( गणाधिपति श्री तुलसी )
२ जैन तत्त्व-विद्या- पृष्ठ २७ ( गणाधिपति श्री तुलमी )
३ जैन दर्शन मनन और मीमामा, पृष्ठ २५६ ( आचार्यश्री महाप्रज्ञ )
४ प्रेक्षाध्यान प्राण- विज्ञान ( आचार्यश्री महाप्रज्ञ )