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जीवन-शक्ति-प्राण
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आयाम मे प्रवेश पा सकता है ।
दीर्घ श्वास प्रेक्षा, समवति श्वान प्रेक्षा, श्वास सयम, शरीर प्रेक्षा, चैतन्य वेन्द्र प्रेक्षा, मत्र, जप आदि प्रयोगो से प्राण विद्युत मचित, सतुलित और विकसित होती है । इससे मनुष्य शरीर का केन्द्रीय-नाडी सस्थान और परिधिगत नाडी सम्यान सशक्त बनता है। मानवीय मस्तिष्क की अपार क्षमनाए जाग जाती हैं । भावना-तत्र निर्मल और नियत्रित होता है । इससे मानवीय व्यवहारो का परिष्कार होता है, वृत्तियो मे परिवर्तन होता है। अत अपेक्षित है, हम अपने जीवन-विकास के मौलिक माघार "पर्याप्ति और प्राण" को मार सैद्धातिक दृष्टि मे ही न जानें, अध्यात्म विकास तया साधना के विभिन्न कोणो से भी जानें।
प्रेक्षा-ध्यान के नालोक मे हमे यह भी जानने को मिला है कि पर्याप्तियो और प्राण-शक्तियो के मूल पेन्द्रविन्दु हमारे शरीर मे कहा हैं ? जिनकी प्रेक्षा कर हम उन्हें और अधिक निमल एव जागृन बना सकते हैं ।
एहो पर्याप्नियो से सबधित दस प्राणो के केन्द्र हमारे मस्तिष्क मे
इन्द्रिय पर्याप्ति और प्राण के पाच केन्द्र हैं - (१) म्पर्शन का केन्द्र-ज्ञान-पेन्द्र और शाति-पेन्द्र के मध्य का
भाग। (२) रसन का केन्द्र-वृहत् मस्तिष्क और लघु मस्तिष्क के सधि
स्थल से घोडा पर। (३) घ्राण का पेन्द्र-चन-पेन्द्र की सीध मे दाये भाग में। (४) चक्षु का पेन्द्र-शान-वेन्द्र पीछे वहत् मस्तिष्क के अत मे। (५) प्रोन का वेन्द्र-कनपटी को मीध में भीतर । (६) मन का रेन्द्रमान पेन्द्र । (७) भाषा का पेन्द्र-रमना-केन्द्र के नीचे । (८) गरीर का वेन्द्र-मस्तिष्क के बिल्कुल सामने का भाग
पटन लोब । (९) श्यामोरयान का पेन्द्र -- मेडूला ओवनोगाय-लघ मस्तिष्क
के नीचे और नुपम्ना गीप के ऊपर। (१०) बाहार-सायुप्य प्राण पा पन्द्र-हाइपोपेलेमन । (मानि पेन्द्र)
पी नीघ मे भीतर गहरे में।