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शरीर और उनका आध्यात्मिक मूल्य
४७ उसमे जिज्ञासा समाधान पा पर या विचार-विमर्श कर पुन यथास्थान आ जाना है। यह नारी क्रिया उनने कम समय में हो जाती है कि दूसरे व्यक्ति का पता भी नही चलता।
जैन-नाम्या में उल्लेग्न जाता है कि विनी चौदहपूर्वी मुनि के पास यदि पाईयक्ति जिनामा ने कर आए, वितु समय पर जानी मुनि प्रश्नकर्ता को गह। उत्तर देने में समय न हो तो वे आहारक नाम की विशिष्ट तपोजनित शक्ति द्वारा अपने पीर मे एक हाथ प्रमाण पुतला निकालते हैं, उसे सर्वज के पास भेजने हैं, वह पुनला नवं भगवान से प्रश्न का उत्तर प्राप्त कर पानी मुनि क शरीर में प्रविष्ट हो जाता है : मुनि उत्तर प्रदान कर प्रश्न गर्ता को मतुष्ट कर देते हैं । पदाचित् निर्दिष्ट म्यान पर मर्वज्ञ न मिलें तो उस पुनते से वैमा ही दूसरा पुन ना निकलता है । मवज्ञ से समाधान प्राय पहले पुतले म प्रविष्ट होता है और पहला पुतला मुनि क शरीर गे। मुनि प्रश्नया का समाधान दे सतुष्ट कर देते हैं ।
आहार औदारिक और वंत्रिय की अपेक्षा मूक्ष्म होता है तण तंजर और यामण पी रपक्षा स्थल होता है। फिर भी इसकी गति अव्यवहित होती है। पही रकान्ट नहीं आती।
जाज विजान पामनोविज्ञान के क्षेत्र मे टेलीपंथी तया "प्रोजेक्शन ऑफ पटन वॉटी प्रयोग-परीक्षण की व्यापक चर्चा है । कोस्मिक-रे-लेसर किरणोपी अपार क्षमनाजो पी योग प्रयोग और परीक्षण हो रहे हैउमर 71 म बनिर गरीर और आहारक शरी पर विशेष अध्ययन, मगीना जाए तो जाश्चय पारी रहस्प उद्घाटित हो मरने हैं। तंजस शरीर
जामा पमापओ मे नित्पन्न गरीर तंजम पर है। यह तेजोना कोन - HTTTTI हेतु है । यह तापमय शरीर है। हमारी उपमा, मदिरा और पति या मालर है ।म बिना उमा उत्पन्न नहीं हो गातो पापा हीरता, "न-मचार नादि प्रियाए नही हो सकती। एमापना चिाओ का सचालन मी मागेर द्वारा होता
मता अग्नि-मदता या हेतु । अग्नि पी मटना में प्रत्येक प्रानि साही हा नीगी नुरपनमा दो राय हैं
{ पीर-तमानचाला। २
क्षमता। एमागे की .नि । आधार प्रा. नत्व त उन मरीर में ही
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मे परे भाचाय प्राणयान और नपा