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जैनधर्म जीवन और जगत् जीवो के क्रमिक विकास की दृष्टि से इन्द्रिय, मन आदि का जितना मूल्य है, पर्याप्तियो का मूल्य उनसे कम नही है। ये भौतिक होते हुए भी प्राण-शक्ति की सवालिका है। चित-शुद्धि, मस्तिष्क-विकास तथा आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से भी पर्याप्ति-विज्ञान बहुत ही मूल्यवान् है ।
मदर्म .. १ जैन निद्धात दीपिका ३/१०, ११ (गणाधिपति श्री तुलमी) २ जैन तन्य विद्या पृष्ठ ९, २५, २८ (गणाधिपति श्री तुलमी) 3 जन दर्शन मनन और मीमाया पृष्ठ २५६ (आचार्य श्री महाप्रज) र प्रेक्षाध्यान-प्राणविमान (आचार्य श्री महाप्रज्ञ)