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जैनधर्म जीवन और जगत्
शरीर हैं । इन जीवो के शरीर इतने सूक्ष्म होते हैं कि एक-एक शरीर हमे दिखाई ही नही देता । पानी की एक बूद अप्कायिक जीवो के असख्य शरीरो का पिण्ड है । ये जीव एक साथ रहने पर भी अपनी स्वतन्त्र सत्ता वनाए रखते हैं।
आगम की भाषा मे-पानी की एक बूद मे जितने जीव हैं, उन सब में से प्रत्येक का शरीर सरसो के दाने के समान बनाया जाए तो वे जीव जम्बूद्वीप में नहीं समाते ।
(३) उष्ण लक्षण तेज ही जिनका काय-शरीर होता है, उन जीवो को तेजस्काय या तेजस्कायिक जीव कहते हैं । सभी प्रकार की अग्नि अग्निकाय के जीवो का पिण्ड है । एक साथ रहते हुए भी इन सब जीवो का अस्तित्व अलग-अलग है।
आगम की भाषा मे-एक चिनगारी मे जितने जीव हैं, उनमे से प्रत्येक के शरीर को लीख के समान किया जाए तो वे जीव जम्बूद्वीप मे नही
समाते ।
(४) चलन धर्मा वायु ही जिनका काय-शरीर होता है, उन जीवो को वायुकाय या वायुकायिक जीव कहते हैं । सब प्रकार की हवाए वायुकायिक जीवो का पिण्ड है । एक साथ रहते हुए भी इन सब जीवो का अस्तित्व भिन्न-भिन्न है।
आगम की भाषा मे-नीम के पत्ते को छूने वाली हवा मे जितने जीव हैं, उन सब मे से प्रत्येक जीव के शरीर को खस-खस के दाने के समान किया जाए तो वे जीव जम्बूद्वीप मे नही समाते ।
(५) लतादिरूप वनस्पति ही जिनका काय-शरीर है, उन जीवो को वनस्पतिकाय या वनस्पतिकायिक जीव कहते हैं । वृक्ष, लता, गुच्छ, फल-फूल, धान-पात, कद-मूल -ये सब वनस्पतिकायिक के प्रकार हैं।
इस काय मे रहने वाले जीवो के दो प्रकार हैं-प्रत्येक वनस्पति और साधारण वनस्पति । प्रत्येक वनस्पति के जीव एक-एक शरीर मे एकएक ही होते हैं । एक जीव के आश्रित असख्य जीव रह सकते हैं, पर उन सबका अस्तित्व स्वतन्त्र है।
साधारण वनस्पति मे एक-एक शरीर अनन्त-जीवो का पिण्ड होता है । सब प्रकार की काई, कद-मूल आदि साधारण वनस्पति है ।
ससार के सर्वाधिक जीव वनस्पतिकाय मे ही है । साधारण वनस्पति का एक प्रकार है-"निगोद" यह जीवो का अक्षय कोष है ।
(६) त्रसनशील- गतिशील प्राणी ‘त्रस" कहलाते हैं। अस ही जिनका काय--शरीर है, उन जीवो को त्रसकाय या त्रसकायिक कहते हैं ।
जिन जीवो के शरीर मे सुख-प्राप्ति अथवा दु ख-मुक्ति के लिए