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जैनधर्म जीवन और जगत्
पुण्य-पाप तालाब का निकलता-बहता पानी है। आस्रव तालाब का नाला है । सवर तालाब के नाले का निराध है । निर्जरा - जल निष्कासन-प्रक्रिया से पानी का निकलना निर्जरा है । बध-तालाब का सचित जल बध है। मोक्ष-खाली तालाब मोक्ष है।
यहा एक बात और विशेष रूप से ज्ञातव्य है कि यह विश्व सप्रतिपक्ष है । प्रतिपक्ष का सिद्धात सर्वत्र समान रूप से लागू है । क्योकि प्रतिपक्ष के बिना पक्ष का अस्तित्व असभव है । नौ तत्त्वो मे भी प्रत्येक तत्त्व के साथ उसके प्रतितत्त्व का प्रतिपादन है ।
विश्व मे यदि जीव का अस्तित्व है तो अजीव भी निश्चित है । जीव चेतनावान् पदार्थ है तो अजीव चेतनारहित । जीव दो प्रकार के होते हैंसिद्ध और ससारी । सिद्ध आत्माए जन्म-परम्परा से मुक्त हैं । ससारी आत्माए कर्म-प्रभाव से ससार मे परिभ्रमण करती हैं और सुख-दुख का भोग करती हैं । इसका कारण है-पुण्य-पाप । ये दोनो प्रतिपक्षी हैं । आत्मा की सत् प्रवृत्ति से आकृष्ट पुद्गल-स्कन्ध शुभकर्म या पुण्य कहलाता है, तथा आत्मा की असत् प्रवृत्ति से आकृष्ट पुद्गल-स्कन्ध अशुभ कर्म या पाप कहलाता है।
____ आस्रव का प्रतिपक्षी तत्त्व है सवर । आस्रव चेतना का छिद्र है, जिससे निरन्तर कर्म-रजो का प्रवेश होता रहता है । सवर आस्रव-निरोध की प्रक्रिया है । इससे कर्मों का आगमन रुकता है।
वन्धन के प्रतिपक्षी तत्त्व हैं-निर्जरा और मोक्ष । निर्जरा आत्मा की आशिक उज्ज्वलता है। मोक्ष है-कर्ममलो का पूर्णत विलय । जिस क्षण नया कर्म-बन्धन अवरुद्ध हो जाता है और पूर्वबद्ध कर्म पूर्णत क्षीण हो जाते हैं, वही क्षण मोक्ष का क्षण है ।