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जन्मान्तर यात्रा (गतिचक्र)
४ देव गति ।
नारफ --- नरक गति मे रहने वाले जीव नारक कहलाते हैं। नारक जीवों के आवास-स्थल रत्न प्रभा, शर्करा प्रभा आदि सात पृथ्वियां हैं। ये पृथ्विया नीचे लोक मे हैं। वहा के निवासी कष्ट-बहुल जीवन जीते हैं । अत्यधिक शारीरिक और मानसिक यातनाए भोगते हैं। उनकी यातनावेदना तीन प्रकार की होती है
१. उस क्षेत्र के प्रभाव मे होने वाली वेदना । २ नारक जीवो द्वारा परस्पर लडाई-झगडा कर उत्पन्न की गई
वेदना । ३ परमाधार्मिक देवो द्वारा दी जाने वाली वेदना ।
इन देवो द्वारा दी जाने वाली यातना प्रथम तीन नरक भूमियो मे होती है । उससे आगे दो ही प्रकार की वेदना रहती है। नारक जीवो की वेदना उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। इन नरक भूमियो मे उन जोवो को जाना पटता है, जो अत्यन्त र कर्मों व बुरे विचारो वाले होते हैं। जैन-दर्शन के अनुमार रत्नप्रभा नाम की प्रथम नरक भूमि के ऊपर यह मनुष्य लोक अवस्थित है।
तियंच-मनुष्य के सिवाय सारे दृश्यमान प्राणी-जगत् का समावेश निर्यच गति में हो जाता है । जीव जगत् का बहुत बडा भाग इसमे समा जाता है । यानी जीवो की सर्वाधिक सख्या इसी गति मे है। एक इन्द्रिय पाल जीवो से लेकर चार इन्द्रिय वाले जीवो तक सभी जीव तिर्यच ही होते हैं । पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति (पेड-पौधे आदि) एकेन्द्रिय तिर्यच है । कृमि, चीटी, मक्खी, मच्छर-ये क्रमश दो, तीन एव चार इन्द्रिय वाले प्राणी हैं । ये सभी तिर्यच हैं । कुछ पचेन्द्रिय जीव भी तिर्यच होते हैं, जैसेपशु-पक्षी आदि । पचेन्द्रिय तिर्यच अनेक प्रकार के हैं। मछली आदि जलचर पचेन्द्रिय है । गाय, भैस बादि स्थलचर पचेन्द्रिय हैं।
तिर्यच गति में कुछ जीव वहत शक्तिशाली होते हैं। उनमे ज्ञानघेतना भा विकसित होती है। कभी-कभी लगता है, उनकी शक्ति और बुद्धि र मामने मनुष्य का परीर-वल और बुद्धि-बल नगण्य है। फिर भी उनकी अपेक्षा मनुप्य योनि श्रेष्ठ है । इसका कारण यह है कि मनुष्य की विवेकचतना जागृत होती है । अन्य पाणियो मे उनका जभाव होता है । इस दृष्टि मे तिर्यच गति का अप्रशस्त माना गया है ।
___ मनुष्य-जिसमे चिंतन, मनन और अनुशीलन की क्षमता होती है, पर मनुष्य है । मनुप्य सर्वाधिक विकसित चेतना दाला प्राणी है। उसमे दियाम की जनन सभावनाए है। नत्यु के पश्चात वह पुन मनुप्य देह या पर मरना है तथा देव नि, नियंच चोनि या नरयिक स्पिति को भी