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जापन - 17
नामकरण
जैन-धर्म के विभिन्न गुणो मे विभिन्न नाम रहे हैं। इसके प्राचीन नाम हैं --निर्गन्थ प्रवचन, अहंत धर्म, समता धर्म और श्रमण धर्म । अर्वाचीन नाम है-जिनशासन या जैनधर्म । इनमे भी बहुप्रचलित और बहुपरिचित नाम जैन-धर्म ही है। जैन-धर्म नाम भगवान महावीर के बाद मे ही प्रचलित हुआ ऐसा उत्तरवर्ती साहित्य के आधार पर सिद्ध होता
जैन कौन ?
जिन प्रवचन ही जैन-धर्म का मूल आधार है । जिन वाणी पर आस्था रखने वाला तथा उन शिक्षा-पदो का आचरण करने वाला समाज जैन समाज कहलाता है । जैसे बुद्ध द्वारा प्रवर्तित धर्म बौद्ध धर्म, ईसा द्वारा उपदिष्ट धर्म ईसाई धर्म कहलाता है, वैसे ही "जिन" या अर्हत् द्वारा प्रवर्तित धर्म जैन-धर्म अथवा आर्हत् धर्म कहलाता है। जैसे शिव और विष्णु को इष्ट मानकर चलने वाले शैव और वैष्णव कहलाते हैं, वैसे ही अहंत या जिन को इष्ट मानकर चलने वाले जैन कहलाते हैं । सार्वभौम धर्म
यहा एक वात विशेष रूप से ज्ञातव्य है कि जैसे बुद्ध, ईसा, शिव या विष्णु व्यक्तित्व-वाचक नाम हैं, वैसे जिन या अहंत् शब्द व्यक्ति विशेष के वाचक नहीं हैं । जैनधर्म मे व्यक्ति-पूजा का कोई स्थान नहीं है । वह व्यक्ति की अर्हताओ को, योग्यताओ को मान्यकर, उसकी पूजा-प्रतिष्ठा में विश्वास रखता है।
जिसके ज्ञान, दर्शन, चारित्र और शक्ति के आवारक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, चैतन्य का परम स्वरूप प्रकट हो जाता है, वह कोई भी व्यक्ति अर्हत् की श्रेणी में आ सकता है ।
जन-धर्म सिर्फ सप्रदाय और परम्परा ही नहीं, बल्कि अपने आपको जीतने और जानने वालो का धर्म है। इसका प्रमाण है-जन-धर्म का नमस्कार महामत्र और चतु शरण सूत्र । नमस्कार महामत्र
णमो अरहताण-मैं अर्हतों को नमस्कार करता हूँ। णमो सिद्धाण-मैं सिद्धो को नमस्कार करता है । णमो आयरियाण-मैं आचार्यों को नमस्कार करता है। णमो उवज्झायाण-मैं उपाध्यायों को नमस्कार करता है। णमो लोए सव्वसाहूण-मैं लोक के सव सतो को नमस्कार करता
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