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प्रथम खण्ड/प्रथम पुस्तक
भावार्थ-प्रत्यभिज्ञान से गुणों में नित्यता की ही प्रतीति होती है।
अपि चैवमेकसमये स्यादेकः कश्चिदेव तत्र गुणः ।
तन्नाशादन्यतरः स्यादिति युगपन्न सन्त्यनेकगुणाः ॥ १२७ ॥ अर्थ-गुणों को उत्पाद-व्यय रूप मानने से द्रव्य में एक समय में कोई एक गुण ठहरेगा। उस गुण के नाश होने से दूसरा गुण उसमें आवेगा। एक साथ द्रव्य में अनेक गुण नहीं रह सकेंगे।
सदसद्यतः प्रमाणातदृष्टान्तादपि च बाधितः पक्षः ।
स यथा सहकारफले युगपदवर्णादिविद्यमानत्वात् ॥ १२८॥ अर्थ-द्रव्य में एक समय में एक ही गुण की सत्ता मानना ठीक नहीं है क्योंकि यह बात प्रमाण और दृष्टान्त दोनों से बाधित है। आम के फल में एक साथ ही रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदिक अनेक गुणों की सत्ता प्रत्यक्ष प्रतीत होती है।
अथ नोटिति जोतिरा निमामिनस्ते इति पक्षः ।
तत्कि स्यान्ज गुणानामुत्पादादित्रयं समं न्यायात ॥ १२९॥ अर्थ-यदि उपर्युक्त दोषों के भय से गुणों को नित्य और परिणामी माना जाय तो फिर गुणों में एक साथ उत्पादादि जय क्यों नहीं होंगे, अवश्य होंगे।
भावार्थ-द्रव्यों की तरह गुणों में भी उत्पादादि त्रय होते हैं यह फलितार्थ निकल चुका। यही बात पहले कही जा चुकी है। अतः गुण नित्यानित्यात्मक हैं।
अधि पूर्व च यदुक्तं द्रव्यं किल केवलं प्रदेशाः स्युः ।
तन्त्र प्रदेशतत्त्वं शक्तिविशेषश्च कोऽपि सोऽपि गुणः ।। १३० ।। अर्थ-पहले यह भी शंका की गई थी कि केवल प्रदेश ही द्रव्य कहलाते हैं, सो प्रदेश भी प्रदेशत्व नामक शक्ति विशेष है। वह भी एक गुण है।
तस्माद्गुणसमुदायो द्रव्यं स्यात्पूर्वसूरिभिः प्रोक्तम् ।
अयमर्थः खलु देशो विभज्यमाना गुणा एव ॥ १३१।। अर्थ-इसलिये जो पूर्वाचार्यों ने गुणों के समुदाय को द्रव्य कहा है वह ठीक है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि यदि देश ( द्रव्य) को भिन्न-भिन्न विभाजित किया जाय तो गुण ही प्रतीत होंगे। भावार्थ-गुणों को छोड़कर द्रव्य कोई भिन्न पदार्थ नहीं है।
शंका ननु चैवं सति नियमादिह पर्याया भवन्ति यावन्तः।
सर्वे गुणपर्याया वाच्या न द्रव्यपर्ययाः केचित् ॥ १३२ ॥ अर्थ-यदि गुण समुदाय ही द्रव्य है तो जितनी भी द्रव्य में पर्यायें होंगी उन सबों को नियम से गुणों की पर्याय ही कहना चाहिये। किसी को भी द्रव्यपर्याय नहीं कहना चाहिये?
समाधान १३३ से १३५ तक तन्न यतोऽस्ति विशेषः सति च गुणानां गुणत्ववत्त्वेऽपि ।
चिदचिद्यथा तथा स्यात् क्रियावली शत्तिरथ च भाववती ॥ १३॥ अर्थ-शंकाकार का उपर्युक्त कहना ठीक नहीं है क्योंकि गुणों में भी विशेषता है। यद्यपि गुणत्व धर्म की अपेक्षा से सभी गुण, गुण कहलाते हैं तथापि उनमें कोई चेतन गुण है कोई अचेतन गुण है। जिस प्रकार गुणों में यह विशेषता है उसी प्रकार उनमें कोई क्रियावती शक्ति (गुण) है और कोई भाववती शक्ति है यह भी विशेषता है।