Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अकारादि-चूर्ण
(२७) [८८] अश्वगन्धादि चूर्णम् (५) । [९१] अष्टाङ्ग लवणम् (चं. सं.चि.अ. १५) (वं. से. र. अ.)
सौवर्चलमजाजी च वृक्षाम्लं साम्लवेतसम् । अश्वगन्धा पलं त्रिंशच्चूर्णयित्वा विचक्षणः। त्वगेलामरिचाशं शर्करा भागयोजितम् ।। वृद्धदारुकचूणन समभागन्तु कारयत् ।। । एतल्लवणमष्टांगमग्निसन्दीपनं परम् । स्थापयित्वा घटे दिव्ये सर्पिषा परिभाविते । । मदात्यये कमाये दद्यात्स्रोतोविशोधनम् ॥ कर्षमेकं समश्नीयाच्चूर्णस्य पयसा सह ॥ . संचल नमक, जीरा, इमली, अमलबेत, दालकरीव नित्यं स्रवति सर्व दोष विवर्जितम् ।। । चीनी, इलायची, कालीमीर्च प्रत्येक आधा भाग, चीनी तेजसा प्रभत्वयुग्रो रश्मिमानिव भास्करः। १ भाग। सबको महीन करके चर्ण बनावे । इस भवत्येव चतुर्मासर्वलिपलिस वर्जितः ॥ अष्टाङ्ग लवणके सेवनसे मन्दाग्नि तथा कफज ___ असगन्ध चूर्ण १ सेर ७० तोला, विधारा चूर्ण | मदात्यय का नाश होता है और स्रोत शुद्ध होते हैं। १ सेर ७० तोला । दोनों चूर्णों को मिश्रित करके [९२] असनादि योगः शुद्ध चिकने पड़े में भरकर रखदे। इस में से
(भा. प्र. म. खं. प्रमे.) प्रतिदिन १। तोलाभर लेकर दूधके साथ सेवन
असनंच पियालं च शालं खदिरकं तथा। करने से हाथीके समान नित्यप्रति मैथुन करनेकी
शालवर्ग तथा ग्राह्यं भवेचैतद्विचक्षणैः।। शक्ति प्राप्त होती है। . तथा इसके सेवनसे ४ मास में मनुष्य |
मधुमेहत्वमापनं भिषग्भिः परिवर्जितम् । अत्यन्त तेजस्वी और बलीपलित रहित होजाता है।
योगेनानेन मतिमान् प्रमेहिणमुपाचरेत् ॥
___पीतशाल, चिरौंजी, साल, खैर और साल वर्ग [८९] अश्वगन्धायोगः (वृ. नि. र.) ।
| ( दोनों प्रकार के साल, करंजद्वय, खैर, दोनों अश्वगन्धाकषायेण सिद्धं दुग्धं घृतान्वितम् ।।
चन्दन, अर्जुन, भोजपत्र, दोनोंप्रकारकी लोध, ऋतुस्नातागना प्रातः पीत्वा गर्भ दधाति हि ॥
सिरस, अगर, सुपारी, पिलखन, धाय, दारुहल्दी, असगन्धके कषायके साथ दूध पकाकर उसमें घी डालकर ऋतुस्नाता स्त्री प्रातःकाल
और बेला) की औषधियों से मधुमेह और घोरतर पिए तो गर्भ रहे।
प्रमेह का नाश होता है। [१०] अश्वत्थवल्कलादि योग
[९३] अहिफेन योगः (यो. र. छ. चि.)
___ (वृ. नि. र.) अश्वत्थवल्कलं शुष्कं दग्धं निर्वापितं जले। अहिफेनं सुसंभृष्टं खपरे मृदुवह्निना । तज्जलं पानमात्रेण छर्दि जयति दुस्तराम् ॥ पक्कातिसार शमनं भेषजं नास्त्यतः परम् ॥
पीपलकी सुग्वी छालको जलाकर पानीमें | अफीम को एक ठिकरे में डाल कर मन्दाग्नि बुझावे उस पानीके पीनेसे छर्दी ( वमन ) का नाश पर पकाले । यह पक्वातिसारके लिये अत्यन्त होता है।
| उपयोगी है।
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