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२६५.
भगवती सूत्र-स. १८ उ. १ जीव प्रथम है, या अप्रथम ?
प्रश्न-णोभवसिद्धीय-णोअभवसिद्धीए णं भंते ! जीवे णोभव० पुच्छ। उत्तर-गोयमा ! पढमे, णो अपढमे । प्रश्न-णोभवसिद्धीय-णोअभवसिद्धीएणं भंते ! सिदधे णोभव० । उत्तर-एवं पुहुत्तेण वि दोण्ह वि । ९ प्रश्न-सण्णी णं भंते ! जीवे सण्णीभावेणं किं पढमे-पुच्छा ।
९ उत्तर-गोयमा ! णो पढमे, अपढमे । एवं विगलिंदियवज्ज जाव वेमाणिए । एवं पुहुत्तेण वि । ३ । असण्णी एवं चेव एगत्तपुहुत्तेणं, णवरं जाव वाणमंतरा । णोसण्णी-णोअसण्णी जीवे मणुस्से सिद्धे पढमे, णो अपढमे । एवं पुहुत्तेण वि । ४ ।
कठिन शब्दार्थ-भवसिद्धिए-मवान्त कर के सिद्धत्व प्राप्त करने के स्वभाव वाला ।
भाभार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! आहारक जीव, आहारक भाव से प्रथम है या अप्रथम?
५ उत्तर-हे गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है। इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक जानना चाहिये । बहुवचन में भी इसी प्रकार है।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! अनाहारक जीव, अनाहारक भाव की अपेक्षा प्रथम है या अप्रथम ?
६ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् प्रथम होता है और कदाचित् अप्रथम। प्रश्न-नरयिक जीव, अनाहारक भाव से प्रथम है या अप्रथम ?
उत्तर-प्रथम नहीं, अप्रथम है। इसी प्रकार नरयिक से ले कर वैमानिक तक जानना चाहिये । सिद्धजीव, अनाहारक भाव की अपेक्षा प्रथम है, अप्रथम
७ प्रश्न-हे भगवन् ! अनाहारक जीव, अनाहारक भाव से प्रथम हैं या अप्रथम ?
नहीं।
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