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कुछ तो बहुत दूर हैं सागर से आप कितना ही धक्का दो, वे न गिरेंगे। गिरेंगे भी तो जमीन पर गिरेंगे। उठकर खड़े हो जायेंगे और गाली देंगे कि क्यों धक्का दिया? हम भले-चंगे जा रहे थे और तुम्हें धक्का देने की सूझी और कुछ हैं जो छलांग लगाने को तैयार ही हैं। उनको धक्के की जरूरत भी नहीं है। वे छलांग लगा ही रहे हैं। उन्होंने तैयारी कर ही ली है। बस, वे एक-दो-तीन की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कूद जायेंगे। वे आपके बिना भी कूद जायेंगे। लेकिन कुछ हैं जो किनारे पर खड़े हैं। पहुंच गये हैं सागर के किनारे और छलांग का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। जरा-सा आपका इशारा, जरा-सा आपके द्वारा दिया गया साहस-वें कूद जायेंगे।
बुद्ध को यह तर्क स्वीकार कर लेना पड़ा।
और मेरे खयाल में यह कथा बड़ी बहुमूल्य है क्योंकि यह सभी बुद्धपुरुषों के सामने ऐसी घटना घटती है। जब मिलता है सत्य तो एक मन होता है, चुप रह जाओ। कबीर ने कहा है, 'हीरा पायो गांठ गठियायो, अब वाको बार-बार क्यों खोले।' मिल गया हीरा, जल्दी से गांठ गठियाया, अपने रास्ता चले। बार-बार खोलने का और बताना और दिखाने का क्या प्रयोजन? वह सभी के मन में उठता होगा। हीरा पायी और गांठ गठियायो। अब कौन फिजूल पंचायत में पड़े!
और यहां ऐसे लोग हैं कि हीरा भी दिखाओ तो वे कहते हैं, कहां है हीरा? दिखाई नहीं पड़ता। हीरा भी दिखाओ तो वे कहते हैं, पता नहीं हीरा होगा कि नहीं होगा। उन्होंने कभी हीरे तो देखे नहीं। वे कहते हैं, होगा कंकड़, रंगीन पत्थर होगा। और कौन जाने यह आदमी धोखा दे रहा है कि लूटने आया है कि क्या मामला है। कि कहेंगे चलो भी, बहुत हीरे देख लिये हीरे होते नहीं हैं सिर्फ सपने हैं! ईश्वर, आत्मा, निर्वाण, मोक्ष होते थोड़े ही, बातचीत है। किसी और को उलझाना। हम बहुत समझदार हैं, हमें न उलझा सकोगे।
तो क्या फायदा! कबीर कहते हैं, हीरा पायो गांठ गठियायो। अपने रास्ते पर चले, बात खतम हो गई। अपनी बात खतम हुई। लेकिन कबीर भी चुप न रह पाये। गांठ को खोल -खोलकर दिखाना पड़ा। कभी-कभी ग्राहक आ जाते हैं। कभी-कभी ऐसे लोग आ जाते हैं जिन्हें हीरा दिखाना ही पड़ेगा। न दिखाओगे तो तुम भीतर ही भीतर खुद अपराध भाव से गड़े जाओगे। इसलिए बोलता हूं।
जाओ, ओ मेरे शब्दों के मुक्ति सैनिको, जाओ जिन-जिन के मन का देश तक है गुलाम जो एकछत्र सम्राट स्वार्थ के शासन में पिस रहे अभी है सुबह शाम घेरे हैं जिनको रूढ़िग्रस्त चितन की ऊंची दीवारें जो बीते युग के संसारों की सरमायेदारी का शोषण सहते हैं बेरोकथाम उन सब तक नई रोशनी का पैगाम आज पहुंचाओ जाकर उनको इस क्रूर दमन की कारा से छडवाओ