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हम पर तमाम उम्र वो लमहे गिरा रहे
भक्त को तो हर घड़ी उसकी याद आने लगती है। हर तरफ से उसकी याद आने लगती है, फूलों-पक्षियों के गीत से ही नहीं, इंद्रधनुषों के रंग, किरणों के जाल से ही नहीं, हर तरफ से। बैठे-बैठे मुझे आया गुनाहों का खयाल
आज शायद तेरी रहमत ने किया याद मुझे
सुनते हो? भक्त यह कह रहा है, आज बैठे-बैठे मैंने जो अब तक गुनाह किये, पाप किये उनकी याद आ गई। जरूर तेरी करुणा ने मुझे याद किया। ऐसा लगता है तेरा दिल मुझे क्षमा कर देने का हो रहा है, तभी तो तूने गुनाहों की याद दिलाई। तू रहीम है, रहमान है। तू करुणावान है। जरूर तू मुझे क्षमा करना चाहता है अन्यथा इन गुनाहों की याद किसलिए दिलाता!
तो गुनाहों तक से भक्त को परमात्मा की ही याद आती है।
बैठे-बैठे मुझे आया गुनाहों का खयाल
आज शायद तेरी रहमत ने किया याद मुझे
फिर तो हर चीज उसी तरफ इशारा करने लगती है। फिर हर रास्ता उसी तरफ जाने लगता है। फिर हर मील का पत्थर उसी तरफ तीर को बनाये हुए दिखाने लगता है। सब तरफ से सुख हो कि दुख, अच्छा हो कि बुरा, शुभ हो कि अशुभ, सफलता हो कि असफलता, सब तरफ से आदमी परमात्मा की याद की तरफ जाने लगता है। सफलता हो तो वह धन्यवाद देता है। दुख हो तो धन्यवाद देता है।
सूफी फकीर बायजीद ने कहा है कि प्रभु, कुछ न कुछ दुख बनाये रखना। क्योंकि जब दुख होता है तो मुझे तेरी याद ज्यादा आती है। सुख में कहीं भूल न जाऊं तू थोड़ा दुख बनाये रखना । तू थोड़े काटे चुभाये रखना। कहीं फूलों में भटक न जाऊं। कांटा चुभता है तो तेरी तत्क्षण याद आ है। दुख में याद आती है न! तो बायजीद कहता है, दुख बनाये रखना । ज्यादा सुख मत दे देना । कहीं ऐसा न हो कि सुख में मैं खो जाऊं। मुझे मेरा भरोसा नहीं है, तेरा ही भरोसा है।
पांचवा प्रश्न :
आप बोलते क्यों हैं?
यह भी खूब रही! बोलने भी न दोगे? अगर मैं चुप रहूं तो तुम पूछोगे आप चुप क्यों हैं? और अगर मैं न बोलूं तो तुम यह प्रश्न किससे पूछते ?
बोलता हूं क्योंकि तुम्हारे पास प्रश्न हैं और मेरे पास उत्तर है। बोलता हूं इसलिए कि न बोलूं