Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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भारत शिरोमाण लोकमान्य पं. बालगंगाधर तिलक
आपके ३० नवम्बर सन् १६०४ के बड़ोदा में दिये हुए व्याख्यानसे अकलंक प्रेस, मुलतान से प्रकाशितः
१. जैनधर्म और ब्राह्मण धर्म दोनों ही प्राचीन धर्म हैं।
२. जैन धर्म अनादि है यह विषय अब निर्विवाद हो चुका हो और इस विषय में इतिहास के दृढ़ प्रमाण हैं ।
३. अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी का शक चलते चौवीस सौ वर्ष से अधिक हो चुके । शक चलाने की कल्पना जैनियों ने ही उठाई थी। इससे भी जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध होती है ।
४. 'अहिंसा परमोः धर्म' इस उदार सिद्धान्तने ब्राह्मण धर्म पर चिरस्मरणीय छाप मारी है। पूर्व कालमें यज्ञके लिये असंख्य पशु हिंसा होती थी; परन्तु इस घोर हिंसाका ब्राह्मण धर्म से बिदाई ले जाने का श्रेय जैनधर्म हीके हिस्सेमें है। अत: ब्राह्मण धर्म को जैन धर्म हीने अहिंसा धर्म सिखाया। यज्ञोंकी हिंसा जो दोनों धर्मों के बीच झगड़े की जड़ थी वह अब मिट गई।
५. ब्राह्मण और हिन्दू धर्म में मांस भक्षण और मदिरा पान बंद होगया, यह भी. जैन धर्मका ही प्रताप है ।
६. जैनधर्म और ब्राह्मण धर्म का बाद में कितना निकट संबंध हुआ है सो ज्योतिषशास्त्री भास्कराचार्य के ग्रन्थसे विशेष
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