Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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उक्त कथित सम्पूर्ण वृतान्त राजाको आद्यान्त सुनाया। यह सुन राजाभी बहुत अचंभित और हर्षायमान हुये, और उपाध्यायजी को बहुमूल्य पुरस्कार दे पुलकित वदन विदा किया ।
युवावस्था
बालकाल और विद्याध्ययन - काल समाप्त करते हुए युवावस्था
का भी आगमन हुआ । इस समय भगवान महावीरके जीवन में दो प्रकारके हेतु उपस्थित हुए। एक तरफ युवावस्था अपना पूर्ण विकास पाकर खिल रही थी तो दूसरी ओर आत्मभाव तेजी के साथ प्रकाशित हो रहे थे । संसार के मोहक पदार्थोंसे आपका मन हट गया था और विरक्त भावनाएं बढ़ रही थी । इस बातका पता आपके माता पिता और कुटुंबियों को भी मालूम पड़ने लगा था । ऐसी अवस्था में मातापिता पुत्र प्रेमके वशीभूत होकर बर्द्धमान विवाहका प्रपञ्च रचने लगे ।
जैनियों की दिगम्बरादि सम्प्रदायें भगवान महावीरको प्रखंड बालब्रह्मचारी बतलातें हैं । परन्तु श्वेताम्बर आम्नायके कल्पसूत्रादि ग्रन्थों में लिखा है कि भगवान की इच्छान होने पर भी माता पिता की आज्ञा भंग करना अनुचित समझ उन्होंने महाराज समरवीर की कन्या ' यशोदा' के साथ अपना विवाह किया । ( प्रकृतिका नियम है कि पूर्व संचित कर्म भोगे विना छूट नहीं सकते; फिरभी ज्ञानियों के लिये भोगभी कर्म निर्जराका हेतु होता है ) तदनुसार भगवान महावीरको कुछ कालतक गृहस्थावास भी करना पड़ा । आपकी एक ' प्रिय दर्शना' नामकी कन्याभी हुई जो राजकुमार जमाली को व्याही गई थी ।
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