Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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तव तो यह सौदा अपशकुन का समझ उस वेश्याने बसुमति को उस सुभटके पास लाकर उसे फिरसे सौंप दिया और अपने पैसे वापिस ले घर चली गई। बादमें उस सुभटने उस कन्याको धनावह सेठको बेची । धनावह सेठ की कोई संतान न थी इसलिये उसने बड़े प्रेम से बसुमतिको अपनी मानकर घर ले आया । और उसका नाम चन्दनबाला रक्खा ज्योंहीं चन्दनबाला सेठ धनावहके साथ घरमें आई त्योंही उसे देख सेठकी गृहणी मूलाके मनमें ईर्षा पैदा होने लगी। एक दिन मूला कही बाहर गई हुई थी कि सेठजी घरमें आये और पैर धोने को पानो मांगा । मूला घरमें न थी इसलिये चन्दनवालाने अपने पितासे कहा "पिताजी ! माताजी घरमें नहीं नहीं है, मैं स्नान कर रही हूं, आप यहीं पधार जावें तो मैं ही आपके पांव धुला देऊ” यह सुन सेठ चन्दनवालाके पास गया । चन्दनबाला सेठजी के पांव पर पानी डालने लगी। इतने में ही मूला वहां आ पहुंची और चन्दनवाला का यह कार्य देख मन ही मन क्रोधित हो गई। अब तो उसकी ईर्षा चंदनवाला के प्रति और भी बढ़ गई।
फिर एक दिन जब सेठजी बाहर गांव गये थे, तब कोई बहाना ढूंढकर मूला चन्दनबालापर ऋधित हो गई। उसने तुरन्त एक नाईको बुलाकर उसका सिर मुंडवा दिया और लोहार द्वारा उसके पैरोंमें बेड़ी डलवाकर अपने मकानकी एक कोठरीमें उसे कोड़ दिया। वहां चन्दनवालाने तेले अर्थात् तीन दिनके उपवास की तपस्या धारण कर ली। तीसरे दिन जब सेठ जी घर आये तो देखा कि मूला तो अपनी माताके घर चली गई और चन्दनबालाका पता नहीं । उन्होंने अड़ोसी-पड़ोसी से बहुतेरी पूछताछ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com