Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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केवल ज्ञान उत्पन्न होनेके बाद गौतम स्वामी पूरे बारह वर्षतक इस संसारमें विचरते रहे। स्थान-स्थानमें फिरकर भव जीवोंको प्रतिबोधित किया। अहिंसाका व्यापक रूप इन्हीं के समयमें भारतव्याप्त हो गया था । संसार भरमें शान्ति फैल गई । पूर्ण बारह वर्ष तक प्रचार-कार्य करके प्रभु गौतम स्वामी भी मोक्ष पदको प्राप्त हो गये।
इसके पश्चात् भगवान महावीर स्वामीके पांचवे गणधर श्री सुधर्मास्वामीने इस धर्मकी अहिंसाका प्रचार कार्य अपने सिर लिया। पूर्ख आर्यावर्तमें इन्होंने भगवानका सत्संदेश जनताके कानों तक पहुंचाया। प्रत्येक धर्मावलम्बियोंने अहिंसातत्वको ही धर्मका मूल स्वीकार किया । सुधर्मास्वामीने भी अपने अनुयायियों की संख्यामें आशातीत वृद्धि की । फिर अपने शिष्य जम्बू स्वामी पर धर्म प्रचार का सारा भार सौंपकर आप निर्वाण पदको प्राप्त हुए । जम्बू स्वामी ही अन्तिम केवली हुए। उन्होंने भी अहिंसा का बहुत प्रचार किया । इन्हींके समयमें शास्त्रों की पुनः रचना हुई और जैनियोंकी संख्यामें करोड़ोंकी आवृद्धि हुई। यहां तक कि जैनियोंके मूल तत्व भारत व्याप हो गये।
जैसा लोक मान्य पं. बालगंगाधर तिलकने दर्शाया है कि बस इतिहासका यही समय है जबसे वैदिकादि धर्मों में से हिंसा सदा के लिये विदा पा चुकी; और जैनधर्म की अहिंसा का उज्जवल प्रकाश भारतके प्रत्येक धर्म में व्याप्त होकर चमकने लगा।
॥सिरसा वन्दे महावीरम् ।।
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