Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha

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Page 140
________________ श्री महावीर-स्तव रचयिता श्री अगरचन्द्रजी नाहटा-बीकानेर सिद्धारथ-कुल कमल दिवाकर, त्रिशला-कुक्षि-मानस-हंस । चरम जिनेश्वर महावीर हैं, मंगलमय त्रिभुवन अवतंस ।। यद्याप उनमें अनुपम गुण गण हैं अनन्त नहीं कोई पार । पा सकता है, किन्तु भक्तिवश करता हूं मैं वही विचार । आत्मामें तन्मयता जिनकी थी अतीव उन्नत अविचल । परभावों की त्याग-भावना थी वैसी ही उग्र विमल ॥ विश्व प्रेम भी ओत-प्रोत था जिनके जीवन में पूरा । अद्वितीय हो सहनशील घन दूषण-गण जिनने चूरा ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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