Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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की । तब एक पड़ोसी बोला कि 'गडबड़ मचानेके पहले अपना घर भली भांति देख लो।' सेठजीने उसकी बात मान ली और घर को सब कोठरियां देखना प्रारम्भ कर दिया । देखते-देखते एक कोठरीमें चन्दनवालाको बेड़ासे जकड़ी हुई पाया । सेठ उसी समय चन्दनवालाको वाहर लाया और सामनेकी ड्योढीपर लाकर नजदीक सूपमें पड़े हुए उड़द के वाकुले उसके सामने धर दिये और उसकी बेड़ी कटवाने के लिए लोहार बुलाने चले गये।
इस दिन चन्दनवालाका तेलेका पाराणा था । उसके मन में यह भावना उत्पन्न हो रही थी कि यदि यहां कोई सन्त मुनिराज आ जावें तो उन्हें कुछ अहार कराकर पारणा करूं। इतनमें हो भगवान महावीर पारण के हेतु पधारे । अपने अभिग्रहको सफल होते पूर्ण पांच माह पच्चीस दिन हो गये और ज्यों ही वे चन्दनवालाके यहां पहुंचे तो वहां अभिग्रहकी एक बातको छोड़ शेष सब बातें उन्हें मिल गयों, परन्तु वह एक बात न होनेके कारण वे वहांसे लौट पड़े। यह देख चन्दनवाला अपनेको धिक्कारती हुई रो पड़ी और उसकी आंखोंसे अश्रुधारा बह निकली; बस यही एक बात होनेको थी कि भगवानकी दृष्टि पुनः उसपर पड़ी। भगवानने अपने अभिग्रहकी कुल सामग्री एक ही स्थानमें पाकर उन उडदके बाकुलोंसे पारणा किया। बस फिर क्या था, देवदुंदुभि बाजने लगी और चन्दनवालाकी लोहेकी बेड़ी स्वर्णकी होकर
आपसे आप टूट पड़ी । देवोंने भी धनावहके घर पंचद्रव्यों और रत्नोंकी वर्षा की । भगवानने चन्दनवालाके घर पारणा कर अन्यत्र बिहार कर दिया । आगे जब भगवानको केवल ज्ञान हुआ तब चन्दनवालाने भी दीक्षा ग्रहण करली और अपना शेष जीवन
आत्मसंशोधनमें लगाकर मुक्तिका मार्ग पकड़ लिया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com