Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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और बोला "सर्वज्ञ । आपतो घट-घटकी जानते हैं। आपका स्याद्वाद सिद्धान्त मैं आजतक सुनता ही था अब तो उसपर मेरी पूर्ण श्रद्धा हो गई है । मुझे भी अपना शिष्य बनाकर स्याद् वाद के सिद्धान्तको मेरे हृदय में उतारिये । और आपकी शरणागति प्रदान कीजिये ।” इसपर भगवानने उसे स्याद्वद धर्म के सन् सिद्धान्तोंका महत्व समझाया और उसे श्रावक धर्मकी दीक्षा देकर वहांसे गमन कर दिया। वहांसे राजगृहमें पधारकर चौबीस करोड़ स्वर्ण मुद्राके धनी महाशतक और उनकी पत्नी रेवतीको भो श्रावक धर्म के बारह व्रतों से विभूषित किया ।
राजर्षि प्रसन्नचन्द्र मुनि एवं गृहस्थ धर्मका सुन्दर उपदेश देते हुए वो स्थानस्थानपर पुरुषार्थ और पराक्रमको सुन्दर महिमाका प्ररूपण करते हुए अनुक्रमसे बिहार करते करते प्रभु महावीर पोतनपुरकी ओर जा निकले । उस समय वहां राजा प्रसन्नचन्द्र राज्य करता था। ज्यों ही प्रभु उसके नगरमे पधार तो उस नगरके बाहर मनोरम नामक उद्यानमें देवताओंने समवसरणकी रचना की। वहां का राजा प्रसन्नचन्द्र उसी समय प्रभुकी वंदना करने आया । प्रभुकी देशना सुन उसको उसी समय वैराग्य उत्पन्न हो गया । वह अपने घर आया और राजकाजका भार अपने लड़केको सौंप, उसे मंत्रि
ओंके हवाले करके, प्रभुके पास आकर दीक्षा ग्रहण कर ली। तत्पश्चात राजर्षि प्रसन्नचन्द्र भगवान के साथ-साथ बिहार करने लगे।
कुछ समय पश्चात भगवान महावीर राजगृह नगरीमें पधारे । यह समाचार सुन हर्षायमान हो राजा श्रेणिक सह कुटुम्ब प्रभुकी चन्दना करनेको खाना हुआ। उसकी सेनाके अग्रगामी सुमुख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com