Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha

View full book text
Previous | Next

Page 130
________________ १३२ जब अन्तिम सातवां दिन आया तब उसके परिणामोंने पलटा खाया । उसके हृदयमें विवेक उत्पन्न हुआ। उसने उसी क्षण अपने चलोंको एकत्रित किया और कहने लगा 'शिष्या ! सचमुच इतने समयतक मैंने अपनी आत्माको और जगत्को धोखा दिया। मैं अभिमानवश अपने सर्वज्ञ गुरु भगवान महावीरके सत्सिद्धांतों के प्रतिकूल चला और दुनियाको भी गुमराह करता रहा । मैंने आजतक अपने नामको भी छिपाया । मैं सचमुच मंखलिपुत्र गोशाला ही हूं । अज्ञानताके वशीभूत ही मैंने अपनेको 'जिन' और 'अरिहन्त' कहलानेका थोथा स्वांग रचा । भगवान महावीर ही सच्चे सर्वज्ञ हैं। यदि अपना भला चाहते हो शोघ्रातिशीघ्र उनके शरण में जाकर उनका सत्धर्म अंगीकार करो, जिससे मेरी भी इच्छा पूरी होकर शांति मिले । यही मेरी अन्तिम अभिलाषा है।' शिष्यों ने अपने गुरुकी आज्ञा अक्षरशः पालन की और वे सबके सव भगवान महावीरके शिष्य बन गये । इस तरह पथभ्रष्ट गोशालाने भी अपने अन्तिम परिणामोंको सुधारकर सातवें दिन सत्गति प्राप्त कर ली। वेदनीय कर्मके प्रभावस भगवानकी छै माहसे तेजोलेश्याके कारण शरीरावस्था कुछ विगड रही थी, सो भी सिंह अणगार मुनि द्वारा लाये हुए विजौरके पाक' को खानेसे स्वस्थ हो गई। गौतमस्वामी और लब्धि प्रभाव भगवान महावीर स्वमी के जीवन चरित्रमें गौतमस्वमी और उनके प्रश्न उत्तर एक विशेष स्थान रखते हैं। जबसे वेदान्तानुयायी इन्द्रभूति प्रभु महावीरके शिष्य हुए और उनका नाम गौतम पड़ा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144