Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Author(s): Gulabchand Vaidmutha
Publisher: Gulabchand Vaidmutha
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केवल ज्ञान हो गया । इसी तरह भगवान का समवसरण देखते ही बेले की तपस्यावाले मुनियों को और भगवानकी वाणो सुन एकान्तर उपवास वालोंको केवल ज्ञानकी प्राप्ति हो गई। इसप्रकार पन्द्रह सौ तीन मुनि भगवानके समवसरण आये और तीन प्रदक्षिणा देकर केवलियोंकी परिषदामें चले गये। गौतमस्वामी ने भगवान की चन्दनाकी और नवदीक्षित उन पन्द्रहसौ तीन तपस्वियों को प्रभुकी चन्दना करने को बुलाया। तब भगवान बोले, हे गौतम ! केवलियों की अशातना मत कर । इस पर गौतमस्वामी वोले, स्वामिन् ! ये नये दीक्षित तो केवली हो गये पर मुझे केवलज्ञान क्यों नहीं होता ? प्रभुने उत्तर दिया, गौतम ! तू मेरे पर स्नेह छोड़ दे तो तुझे भी केवल ज्ञान हो जावेगा । इसपर गौतमस्वामी बोले, भगवन् ! मुझे केवल ज्ञानसे कोई मतलब नहीं । मेरी अभिलाषा तो यही है कि आप पर मेरा स्नेह बना रहे ।'
ऐसे गुरु भक्त गौतमस्वामीने ऐवन्त कुमारादि अनेक जीवोंको प्रतिबोधित किया जो अन्तमें केवलज्ञानी बन शिवगतिके वासी हुए। गौतम स्वामीका चरित्र भी बाचने और मनन करने योग्य है परन्तु जैन शास्त्रों में इनके चरित्रकी छटा बहुत विरलतासे पायी जाती है जिसका संगठित चरित्र बनना परम आवश्यक एवं हितकर प्रतीत होता है।
अन्तिम देशना और परिणाम
छद्मस्त अवस्थामें बारह वर्षतक प्रभु महावीरने अपने चरित्र से किस धीरता और वीरताके साथ मौन रहकर अखण्ड शांतिका पाठ पढ़ाया सो तो पाठकों को तो भली भांति मालू न ही हो गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com